“योगी सरकार ने नजूल संपत्ति प्रबंधन अध्यादेश (संशोधित) 2024 पर अंतिम निर्णय लेने के लिए कैबिनेट में मंत्री सुरेश खन्ना की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की। अध्यादेश को फिलहाल मंजूरी नहीं दी गई।”
लखनऊ । मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में नजूल संपत्ति प्रबंधन अध्यादेश (संशोधित) 2024 के मसौदे पर चर्चा की गई, लेकिन इसे मंजूरी नहीं दी गई। इसके बजाय, इस अध्यादेश पर गहन अध्ययन और सुधार के लिए मंत्री सुरेश खन्ना की अध्यक्षता में एक विशेष कमेटी का गठन किया गया।
कमेटी अपनी रिपोर्ट मुख्यमंत्री को सौंपेगी, जिसके बाद इस मसौदे पर पुनः विचार होगा। यह निर्णय इसलिए लिया गया ताकि नजूल संपत्ति पर अधिकार और उपयोग के प्रावधानों को बेहतर ढंग से परिभाषित किया जा सके।
क्या है नजूल भूमि?
नजूल भूमि वह संपत्ति है, जिसका मालिकाना हक सरकार के पास होता है। यह भूमि आमतौर पर पट्टे पर आवंटित की जाती है, जिसकी अवधि 15 से 99 साल तक होती है। यह भूमि ऐतिहासिक रूप से 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जब्त की गई थी। ब्रिटिश सरकार ने इसे सरकारी संपत्ति घोषित किया था, जिसे आज भी सरकार नियंत्रित करती है।
कैबिनेट ने अध्यादेश को क्यों रोका?
- नजूल भूमि पर अमीर और गरीब, दोनों वर्ग के लोग बसे हुए हैं।
- यह जमीन अक्सर बेहद कम किराए या नाममात्र शुल्क (जैसे, ₹1 सालाना) पर आवंटित की गई है।
- नए संशोधन से शर्तों के तहत नजूल की जमीन को फ्रीहोल्ड किया जा सकेगा, लेकिन इससे जुड़े कई मुद्दे स्पष्ट नहीं थे।
संपत्तियों से किराया वसूली की सरकार की मंशा और इस पर समाज के विभिन्न वर्गों के प्रभाव को ध्यान में रखते हुए यह निर्णय रोका गया।
कमेटी का उद्देश्य:
- नजूल संपत्तियों की उपयोगिता, अधिकार और किराए से जुड़े नियमों की समीक्षा।
- फ्रीहोल्ड प्रक्रिया को पारदर्शी और न्यायसंगत बनाना।
- आर्थिक और सामाजिक प्रभावों का आकलन।
- यह विधेयक, विधान परिषद में भेजे गए पुराने प्रस्ताव से भिन्न है।
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विशेष संवाददाता:
मनोज शुक्ल