संजय गांधी पीजीआई में हाल ही में आयोजित इंडियन एसोसिएशन ऑफ मेडिकल माइक्रोबायोलॉजिस्ट की पीजी असेम्बली में प्रो. अतुल गर्ग और प्रो. रूगमी एस एन मारक ने बताया कि अंग प्रत्यारोपण और ऑटो इम्यून डिजीज के मरीजों में संक्रमण का खतरा अधिक होता है। ऐसे मरीजों का इम्यून सिस्टम कमजोर होने के कारण बैक्टीरिया, वायरस और फंगस के संक्रमण की आशंका बढ़ जाती है।
अब, संक्रमण के कारण का पता लगाने में महज चार से पांच घंटे का समय लगेगा, जो पहले एक महीने तक लग जाता था। नए तकनीकी उपायों के तहत, माल्डी टाफ और बायोफायर जैसी विशेष तकनीकों का उपयोग किया गया है। इन तकनीकों की मदद से न केवल रिपोर्ट तेजी से मिलती है, बल्कि संक्रमण की पहचान भी जल्दी हो जाती है, जिससे इलाज शुरू करने में सुविधा होती है।
माल्डी टाफ एमएस तकनीक दुर्लभ यीस्ट, फंगस और परजीवी की पहचान करती है, जबकि बायोफायर प्रणाली नमूना संग्रह के बाद सिर्फ 2 घंटे में रिपोर्ट प्रदान करती है। इसके अलावा, वीआईडीएएस प्रणाली का उपयोग करके आईसीयू और वार्डों में एंटीबायोटिक से संबंधित समस्याओं का भी पता लगाया जा सकता है।
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डीन डॉ. शालीन कुमार और प्रो. चिन्मय साहू ने इस बात पर जोर दिया कि बीमारियों की बढ़ती संख्या के कारण जल्दी से जल्दी कारण का पता लगाना और उपचार आवश्यक है। इस नई प्रणाली से मरीजों को त्वरित और सटीक उपचार मिलने की संभावना बढ़ गई है।