देश में बिजली के निजीकरण के खिलाफ बड़ा आंदोलन खड़ा हो रहा है। राष्ट्रीय समन्वय समिति की बैठक में यह फैसला लिया गया कि इस मुद्दे पर व्यापक स्तर पर विरोध दर्ज किया जाएगा।
आंदोलन की शुरुआत 13 और 19 दिसंबर को देशभर में विरोध सभाओं से होगी। इसके बाद 22 दिसंबर को लखनऊ और 25 दिसंबर को चंडीगढ़ में विशाल बिजली पंचायत का आयोजन किया जाएगा।
27 लाख कर्मचारियों ने भरी हुंकार
इस आंदोलन में देशभर के 27 लाख बिजली कर्मचारी और इंजीनियर शामिल होंगे। यह निर्णय राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक में लिया गया। कर्मचारियों का मानना है कि बिजली का निजीकरण न केवल आम जनता पर आर्थिक बोझ डालेगा, बल्कि ऊर्जा क्षेत्र में असमानता भी बढ़ाएगा।
पूर्वांचल और दक्षिणांचल निगम पर फोकस
विरोध की मुख्य वजह पूर्वांचल और दक्षिणांचल निगमों के निजीकरण का प्रस्ताव है। कर्मचारियों का आरोप है कि यह निर्णय जनता और कर्मचारियों दोनों के हितों के खिलाफ है। उनका कहना है कि बिजली निजीकरण से सेवा की गुणवत्ता में गिरावट आएगी और आम उपभोक्ता को ज्यादा कीमत चुकानी पड़ेगी।
लखनऊ और चंडीगढ़ में होगी बड़ी पंचायत
22 दिसंबर को लखनऊ और 25 दिसंबर को चंडीगढ़ में होने वाली बिजली पंचायतों में बिजली कर्मचारियों और जन संगठनों का जुटान होगा। इस दौरान निजीकरण के खिलाफ अपनी रणनीतियों को और धार दी जाएगी।
क्या है कर्मचारियों की मांग?
कर्मचारियों की मांग है कि बिजली के निजीकरण की प्रक्रिया को तुरंत रोका जाए। उनका कहना है कि यह कदम न केवल सार्वजनिक हितों के खिलाफ है, बल्कि इससे सरकार की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठते हैं।
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