सोलापुर: महाराष्ट्र में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) के खिलाफ विरोध ने अब नया मोड़ ले लिया है। सोलापुर जिले के मालशिरास विधानसभा क्षेत्र के मरकाडवाड़ी गांव में ईवीएम की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करते हुए बैलेट पेपर से चुनाव कराने की मांग जोर पकड़ रही है।
यही वजह है कि रविवार को राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के प्रमुख शरद पवार और उनकी पार्टी के नेता गांव पहुंचे और ईवीएम विरोधी कार्यक्रम में हिस्सा लिया।
शरद पवार ने उठाए ईवीएम पर सवाल
कार्यक्रम के दौरान शरद पवार ने कहा, “चुनाव प्रक्रिया पर लोगों का भरोसा जरूरी है। अमेरिका, इंग्लैंड और कई यूरोपीय देशों में आज भी बैलेट पेपर से मतदान हो रहा है। ऐसे में भारत में भी बैलेट पेपर से चुनाव क्यों नहीं हो सकते?” उन्होंने यह भी कहा कि मरकाडवाड़ी के लोग यदि पुनर्मतदान की मांग कर रहे हैं तो उन्हें रोका क्यों जा रहा है।
गांव वालों का दावा: नतीजे भरोसेमंद नहीं
मरकाडवाड़ी गांव के निवासियों का कहना है कि उन्होंने एनसीपी उम्मीदवार उत्तम जानकर को 80% से अधिक वोट दिए थे, लेकिन ईवीएम परिणामों में यह अंतर नहीं दिखा। ईवीएम के मुताबिक, जानकर को 1,003 वोट मिले, जबकि भाजपा के राम सतपुते को 843 वोट मिले। ग्रामीणों का दावा है कि भाजपा को गांव से केवल 100-150 वोट ही मिल सकते थे।
प्रशासन की सख्ती, गांव का पुनर्मतदान स्थगित
गांव वालों ने 3 दिसंबर को बैलेट पेपर से पुनर्मतदान की योजना बनाई थी, लेकिन प्रशासन ने इसे रोक दिया। शरद पवार ने प्रशासन की इस सख्ती पर सवाल उठाते हुए कहा कि लोकतंत्र में लोगों की आवाज को दबाना गलत है।
ईवीएम विरोध का केंद्र बना मरकाडवाड़ी
मरकाडवाड़ी गांव अब महाराष्ट्र में ईवीएम विरोध का प्रतीक बन गया है। रविवार को मुंबई में भी महा विकास अघाड़ी की बैठक हुई, जिसमें शिवसेना (यूबीटी) के आदित्य ठाकरे, कांग्रेस नेता नाना पटोले और एनसीपी नेता जितेंद्र अव्हाड़ शामिल हुए। इस बैठक में बैलेट पेपर से चुनाव कराने की मांग को लेकर प्रस्ताव तैयार करने पर सहमति बनी।
पवार का वादा: चुनाव आयोग तक ले जाएंगे मामला
शरद पवार ने मरकाडवाड़ी के लोगों से वादा किया कि उनकी मांग को चुनाव आयोग तक पहुंचाया जाएगा। उन्होंने कहा कि देशभर में ईवीएम पर उठ रहे सवालों का हल निकाला जाना जरूरी है ताकि लोगों का लोकतंत्र पर विश्वास बना रहे।
मरकाडवाड़ी के इस आंदोलन ने महाराष्ट्र की राजनीति में नई बहस छेड़ दी है। अब यह देखना होगा कि चुनाव आयोग और सरकार इस मांग पर क्या रुख अपनाते हैं।