लखनऊ। नोटबंदी को चुनावी मुद्दा बनाने की रणनीति यूपी में फ्लॉप हो गई है। सोमवार को भारत बंद के दौरान प्रदेश भर के बाजार खुले रहे।
सपा और बसपा ने इस बंद से दूरी बनाकर कांग्रेस के आक्रोश दिवस को फीका कर दिया। न तो बाजार बंद कराने के लिए कार्यकर्ता बाहर निकले न ही नोटबंदी की चपेट में आए दुकानदारों ने अपने शटर गिराए।
खानापूरी बंद के आह्वान के साथ ही अगले विधानसभा चुनावों में सियासी घमासान को नया रंग भी दे डाला। अब तक नोटबंदी को लेकर संयुक्त रूप से भाजपा को घेरने की कवायद कर रहे विरोधी दलों ने एकला चलो की रणनीति से गठबंधन की राजनीति की हवा निकाल दी है।
चुनाव मैदान में दलित, मुस्लिम और पिछड़े वर्ग के मतदाताओं को रिझाने के लिए सपा-बसपा और कांग्रेस अलग एक्शन प्लान बनाकर भाजपा पर हल्ला बोलने की तैयारी में जुट गए हैं।
नोटबंदी के विरोध में अब तक आक्रामक तेवर अपनाने वाली सपा-बसपा और कांग्रेस सोमवार को बंद से खुद को बचाती नजर आईं। तमाम परेशानी झेलने के बावजूद जनता ने बंद को कोई खास तवज्जो नहीं दी। खुले बाजार और रोजमर्रा की तरह ट्रैफिक जाम ने साफ संदेश दिया कि संसद में केंद्र सरकार के खिलाफ चल रही एकजुट लड़ाई का सड़क से कोई लेनादेना नहीं है।
यूपी में होने जा रहे विधानसभा चुनाव को लेकर सपा-बसपा और कांग्रेस अकेले-अकेले ही भाजपा के खिलाफ माहौल बनाएंगे। समाजवादी पार्टी का आधार मुस्लिम और यादव वोट है। गौरतलब है कि छोटे व्यवसाय से जुड़े मुस्लिम कारोबारी नोटबंदी से खासे प्रभावित हुए हैं। इसके बावूजद बंद से होने वाले नुकसान को झेलने के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं हैं।
सपा ने इसी कारण बंद से खुद को अलग करते हुए धरना-प्रदर्शन तक सीमित रखा। बसपा सुप्रीमो मायावती ने साफ किया कि विरोध का हमारा अपना तरीका है। मीडिया में दिखाया जा रहा है कि विपक्ष के विरोध में बीएसपी शामिल नहीं है।
कांग्रेस के आक्रोश दिवस या लेफ्ट के भारत बंद में बसपा शामिल नहीं है लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि बीएसपी नोटबंदी पर विरोध नहीं कर रही है।
बहिनजी का यह बयान विरोध के गठबंधन से खुद को अलग करने वाला है। वह दलित-ब्राह्मण और मुस्लिमों को एकजुट करने के लिए भाजपा के खिलाफ आक्रामक तेवर दिखा रही हैं। साथ ही सपा और कांग्रेस पर हमला कर मतदाताओं को संकेत देना चाहती हैं कि भाजपा के खिलाफ केवल बसपा ही मुकाबले में है।
बंद की पूरी कवायद में विपक्षी दलों को एकजुट करने की कांग्रेस की कवायद को जरूर झटका लगा है। कांग्रेस प्रदेश में अपने पुराने जनाधार को वापस लाने के लिए इन दोनों दलों के सहारे बंद को सफल बनाने की कवायद में जुटी थी, लेकिन सपा और बसपा दोनों ही दलों ने ऐन मौके पर किनारा कर लिया। इसके बाद कांग्रेस को धरना-प्रदर्शन कर आक्रोश दिवस मनाना पड़ा।
यूपी में दलित-मुस्लिम और पिछड़े वर्ग के निर्णायक वोटों को हासिल करने के लिए फिलहाल सपा-कांग्रेस और बसपा ने सीधे तौर पर भाजपा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है लेकिन इस मोर्चे को जीतने के लिए अकेले ही मैदान में डटे रहने की रणनीति अपना ली है।