लखनऊ। केंद्र सरकार द्वारा आठ नवम्बर की आधी रात से पांच सौ और हजार के नोटों को प्रचलन से बाहर करने यानी नोटबंदी का ऐलान करने किए जाने के बाद से प्रदेश में राजनीतिक समीकरण गड़बड़ा गए हैं।
समूचा विपक्ष नोटबंदी के विरोध में उलझ कर रह गया है तो भाजपा ने इस मौके को भुनाने के लिए रैलियों और सम्मेलनों की छड़ी लगा दी है।
समूचा विपक्ष पिछले बीस दिनों में जनता से सीधे संवाद करके यह बताने में असफल हो रहा है कि नोटबंदी से उसका कितना नुकसान होने वाला है। वहीं भाजपा ने दो दर्जन से ज्यादा रैलियां, सभाएं, यात्राओं और पिछड़ा वर्ग सम्मेलनों के माध्यम से वोटबंदी के अपने फैसले को उचित बताने की कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है।
भाजपा के मंत्री और सांसद ही नहीं खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने मोर्चा संभाल रखा है। वहीं विपक्ष की बात करें तो वह नए कार्यक्रम बनाना तो दूर उसके घोषित कार्यक्रमों ने भी दम तोड़ दिया है।
कांग्रेस ने बड़े जोरशोर से राहुल गांधी की खाट सभा और रोड शो शुरू किए थे। शुरू-शुरू में लगा कि कांग्रेस में जान आ रही है। खाट सभा और रोड शो का पहला चरण पूरा होने के बाद दूसरे चरण के कार्यक्रम की घोषण होनी थी, लेकिन अचानक हुई नोटबंदी की घोषणा ने कांग्रेस का सारा ध्यान संसद पर केंद्रित कर दिया।
संसद के अंदर ही कांग्रेस अपनी पूरी ताकत और कौशल दिखाने में जुट गई। जनता से संवाद बनाने की जरूरत उसे महसूस नहीं हुई। जनता से संवाद के नाम पर राहुल गांधी तीन-चार बार एटीएम की लाइन में लगे वह भी केवल दिल्ली में। इससे जनता के बीच कितना ‘मैसेज’ गया, यह कांग्रेस ही जानती होगी।
इसी तरह नोटबंदी के बाद बसपा ने भी दो-एक भाईचारा सम्मेलन करने के बाद अपना ध्यान संसद और बयानबाजी में केंद्रित कर दिया। यह बात और है कि बसपा अध्यक्ष अध्यक्ष मायावती टीवी पर रोज प्रधानमंत्री को कोसती हुईं दिखी, लेकिन बसपा ने नोटबंदी के खिलाफ कोई सार्वजनिक कार्यक्रम नहीं किए।
बाम अगर सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी की की जाए तो वह भी एक तरह से सन्न है। पिछले तीन अक्टूबर को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपने चुनाव अभियान की शुरूआत ‘विकास से विजय की ओर समाजवादी रथ यात्रा’ से की थी।
इस रथ यात्रा के बाद अगला कार्यक्रम बनता इससे पहले ही नोटबंदी लागू हो गई और रथ यात्रा के पहिये थम गए। यात्रा दूसरा चरण 23 दिन बाद 26 नवम्बर को मुरादाबाद से शुरू हुआ और यात्रा रामपुर में खत्म हो गई।
वहीं सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह की रैलियों को लेकर बड़ी तैयारियां की गई। पर हकीकत में 23 नवम्बर को गाजीपुर में ही मुलायम की एक रैली हुई और दूसरी रैली की घोषणा हुई भी तो उसकी तारीख 14 दिन बाद की तय की गई। मुलायम की प्रदेश में दूसरी रैली बरेली में सात दिसम्बर को होनी है।
वहीं दूसरी ओर भाजपा ने नोटबंदी के बाद अपनी पूर्व घोषित तीसर परिवर्तन यात्रा नौ नवम्बर को बलिया से शुरू की। इसमें भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने जमकर नोटबंदी की वकालत की और विपक्षियों पर निशाना साधा। नोटबंदी से लेकर अबतक भाजपा ने दो दर्जन से अधिक रैलियां और पिछड़ा वर्ग सम्मेलनों का आयोजन किया।
इनमें खुद प्रधनमंत्री नरेंद्र मोदी तीन बड़र रैलियां गाजीपुर, आगरा और कुशीपुर में की। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने भी बलिया, कन्नौज और आजमगढ़ में रैलियों को संबोधित किया और वह कल 29 नवम्बर को महाराजगंज में रैली करने जा रहे हैं। इसके अलावा इस दौरान प्रदेश में केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह, कलराज मिश्र, नितिन गडकरी, मनोहर पर्रिकर, धर्मेंद्र प्रधान, पियूष गोयल, जेपी नड्डा, उमा भारती, साध्वी निरंजन, राधा मोहन सिंह, संजीव बालियान, जनरल वीके सिंह, राज्यवर्धन राठौर, राव वीरेंद्र सिंह, अनुप्रिया पटेल, कृष्णपाल गूजर, संतोष गंगवार आदि और सांसद हेमा मालिनी, योगी आदित्य नाथ, ओम माथुर, प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य सिहत तमाम सांसद व पार्टी पदाधिकारी रैलियों और पिछड़ा वर्ग सम्मेलनों में नोटबंदी के फायदे गिना कर वोटों की गोलबंदी करने में व्यस्त हैं।