“पाकिस्तान की मुख्यमंत्री और पीएम शहबाज शरीफ की भतीजी मरियम नवाज का यूएई के राष्ट्रपति के हाथ मिलाने पर पाकिस्तान में विवाद खड़ा हो गया। कुछ लोग इसे इस्लामी कानूनों के खिलाफ मानते हैं, जबकि कुछ ने इसे सामान्य माना।”
पाकिस्तान। पाकिस्तान की पंजाब प्रांत की मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की भतीजी मरियम नवाज का हाल ही में यूएई के राष्ट्रपति शेख मोहम्मद बिन जायद से हाथ मिलाना पाकिस्तान में एक गंभीर विवाद का कारण बन गया है। यह घटना मंगलवार को हुई, जब शेख मोहम्मद बिन जायद और उनके भाई शेख मंसूर बिन जायद पाकिस्तान की एक निजी यात्रा पर पहुंचे थे। पाकिस्तान के रहीम यार खान जिले में स्थित एयरपोर्ट पर उनका स्वागत करते समय मरियम नवाज ने शेख मोहम्मद बिन जायद से गर्मजोशी से हाथ मिलाया।
यह घटना एक सामान्य अभिवादन प्रतीत होती है, लेकिन जैसे ही सोशल मीडिया पर मरियम नवाज और यूएई के राष्ट्रपति के हाथ मिलाने की तस्वीर वायरल हुई, पाकिस्तान में तीव्र प्रतिक्रिया सामने आई। कुछ लोग इसे इस्लामिक कानूनों का उल्लंघन मानते हुए निंदा कर रहे हैं, जबकि कई अन्य इसे आजकल के आधुनिक और सुलझे हुए समाज की एक सामान्य बात मानते हैं।
यूएई के राष्ट्रपति मोहम्मद बिन जायद, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और मरियम नवाज
पाकिस्तान में इस्लामिक नियमों का मुद्दा
पाकिस्तान में इस्लामी कानूनों के अनुसार, किसी महिला को परिवार के गैर-महरम पुरुषों से, यानी उन पुरुषों से जो उसके पति या परिवार के करीबी सदस्य न हों, शारीरिक संपर्क से बचने की सलाह दी जाती है। मरियम नवाज का यूएई के राष्ट्रपति से हाथ मिलाना इस दृष्टिकोण से कई लोगों के लिए आपत्तिजनक हो गया है। सोशल मीडिया पर इस मामले को लेकर तीव्र बहस हो रही है, जिसमें एक तरफ मरियम नवाज के आलोचक उन्हें इस्लामिक शरिया के खिलाफ बताते हुए आलोचना कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर उनके समर्थक इसे इस्लाम के समकालीन व्याख्याओं और वैश्विक परिप्रेक्ष्य से उचित ठहरा रहे हैं।
इमरान खान के समर्थन में आए समर्थक
विवाद के बीच, पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान के समर्थक भी सक्रिय हो गए हैं। उन्होंने मरियम नवाज पर कटाक्ष करते हुए कहा कि अगर यह हाथ मिलाना गलत है, तो इमरान खान के विदेशों में महिला प्रतिनिधियों से हाथ मिलाने का क्या होगा? इमरान खान के समर्थकों का कहना है कि एक ओर मरियम नवाज शरिया का हवाला देती हैं, जबकि दूसरी ओर वह अपनी राजनीतिक लाभ के लिए विदेशी नेताओं से हाथ मिलाने में संकोच नहीं करतीं। इसके अलावा, इमरान खान के समर्थकों का यह भी कहना है कि इमरान के बच्चों ने भी विदेशों में गैर-महिलाओं से हाथ मिलाया है, तो मरियम नवाज को इस मुद्दे पर दोहरा रवैया नहीं अपनाना चाहिए।
सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाएं
सोशल मीडिया पर इस मुद्दे को लेकर ज़बरदस्त प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं। कई यूजर्स ने मरियम नवाज की आलोचना करते हुए यह सवाल उठाया कि उन्होंने जांच एजेंसी एनबीए के समक्ष पेश होने से इंकार कर दिया था, क्योंकि वे गैर-महरम के सामने पेश होने में असहज महसूस करती थीं। सोशल मीडिया पर यह तर्क भी दिया जा रहा है कि अगर उन्हें जांच में शामिल होने से बचने के लिए शरिया का हवाला दिया जा सकता है, तो फिर उन्होंने यूएई के राष्ट्रपति से क्यों हाथ मिलाया?
एक अन्य पाकिस्तानी यूजर जोहा ने मरियम नवाज की आलोचना करने वालों का जवाब दिया। उन्होंने इमरान खान के समय में भी विदेशी महिला नेताओं से हाथ मिलाने की तस्वीरें साझा कीं और पूछा कि तब धर्म के नियम कहां गए थे? जोहा ने कहा कि महिला के मामले में धर्म को बीच में लाना सही नहीं है और हमें ऐसे मुद्दों को सामान्य रूप से देखना चाहिए।
राजनीतिक हलचल और विवाद का विस्तार
यह विवाद पाकिस्तान में केवल एक सामाजिक मुद्दा नहीं, बल्कि राजनीतिक विवाद भी बन गया है। मरियम नवाज के आलोचक इसे उनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों, खासतौर पर इमरान खान के खिलाफ एक चाल के रूप में देख रहे हैं। वहीं, उनके समर्थक इसे वैश्विक दृष्टिकोण से एक सामान्य घटना मानते हैं, जिसका इस्लाम के कड़े नियमों से कोई लेना-देना नहीं होना चाहिए।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह के विवादों का राजनीतिक फायदा और नुकसान दोनों हो सकता है। यह पाकिस्तान के भीतर धार्मिक और राजनीतिक विमर्श को और तीव्र कर सकता है, जहां एक ओर धर्म को लेकर सख्ती है, वहीं दूसरी ओर समकालीन वैश्विक दृष्टिकोण का प्रभाव भी बढ़ रहा है। इस मामले ने एक बार फिर पाकिस्तान के राजनीतिक और सामाजिक ताने-बाने में एक नई बहस को जन्म दिया है।
मरियम नवाज का यूएई के राष्ट्रपति के हाथ मिलाने को लेकर पाकिस्तान में चल रही बहस राजनीतिक और धार्मिक दोनों दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। यह विवाद सिर्फ व्यक्तिगत रूप से मरियम नवाज तक सीमित नहीं है, बल्कि पाकिस्तान की राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक धारा को भी प्रभावित करता है। अब यह देखना होगा कि इस विवाद का आगामी राजनीतिक घटनाक्रम पर क्या असर पड़ता है और यह पाकिस्तान की राजनीतिक हलचलों में किस दिशा में मोड़ लाता है।
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विशेष संवाददाता – मनोज शुक्ल