भारत आज 47वां विजय दिवस मना रहा है। पाकिस्तान के खिलाफ 1971 का युद्ध हमने आज ही के दिन जीता था। प्रस्तुत है, इतिहास रच देने वाली उस शानदार जीत की कहानी खुद विजेताओं की जुबानी।
मध्यप्रदेश के मुरैना जिले के तरसमा गांव को फौजियों का गांव कहते हैं। यहां रहने वाले दो दोस्तों ने 1971 की लड़ाई में पश्चिमी फ्रंट पर बाड़मेर बार्डर पर दुश्मन देश से लोहा लिया था। युद्ध शुरू होने से 15 दिन पहले ही यदुवीर सिंह तोमर और उनके ही गांव के नेवर सिंह अपनी यूनिट के साथ बाड़मेर बार्डर पर आ गए थे।
बताते हैं, 3 दिसंबर को शाम करीब 6 से 7 बजे के बीच पाकिस्तान के लड़ाकू विमानों ने हमारे बंकर की रोशनी देखकर बम बारी कर दी। हम अपनी प्लाटून के साथ आगे बढ़ते रहे और सुबह होने के कारण सुरक्षित जगह पर रुक गए।
यदुवीर बताते हैं, फिर शाम हुई और मैं जिस ऊंट पर एमएमजी गन के साथ तैनात था, अचानक उसे गोली लगी। ऊंट की आवाज से दुश्मन हमारी प्लाटून की लोकेशन पहचान गए और फायरिंग शुरू कर दी। हमारे 20 जवान जख्मी हुए।
नेवर बताते हैं, इसके हमने बचे हुए साथियों के साथ मोर्चा संभाला और दुश्मन को भागने पर विवश कर दिया। तब तक सुबह हो चुकी थी। यह सुबह थी 17 दिसंबर की। दुश्मन हथियार और वाहन आदि छोड़कर जा चुका था।
यदुवीर सिंह बताते हैं, हमें कर्नल एसआर बहुगुणा कमांड कर रहे थे, लेकिन 17 दिसंबर को यूनिट को पता नहीं चल सका था कि 16 दिसंबर को लड़ाई बंद करने का हुक्म हो चुका है। ऐसे में सुबह होते ही यूनिट फिर से पाकिस्तान की तरफ बढ़ने लगी और हम पाकिस्तान के गदरा जिले में पहुंच गए। आमने सामने गोलियां चलीं। आखिर में पाकिस्तान के सैनिकों ने सफेद झंडा दिखाया।