कोच्चि। प्रेगनेंट होना लड़कियों और महिलाओं की खुद की चॉइस है और इसलिए प्रेग्नेंसी की वजह से अटेंडेंस शॉर्ट होने पर उनके लिए अलग से नियम नहीं बनाए जा सकते। यह फैसला केरल हाई कोर्ट ने सुनाया है। जस्टिस के. विनोज चंद्रन की एक सिंगल बेंच ने दिल्ली हाई कोर्ट के 30 अप्रैल 2010 उस फैसले पर अहसमति जताई जिसमें कहा गया था कि प्रेग्नेंसी की वजह से हाजिरी कम होने पर लड़कियों को परीक्षा में शामिल होने से रोकना मातृत्व को अपराध बताने जैसा है।
जस्टिस चंद्रन कन्नूर यूनिवर्सिटी में बीएड की स्टूडेंट जैसमिन वीजी की याचिका पर सुनवाई कर रहे थे। जैसमिन को दूसरे सेमेस्टर की परीक्षा में शामिल नहीं होने दिया जा रहा था क्योंकि उनकी अटेंडेंस 45 फीसदी से कम थी, जबकि यूनिवर्सिटी के नियम के मुताबिक कम से कम 75 फीसदी अटेंडेंस अनिवार्य है।
जैसमिन ने एक प्राइवेट हॉस्पिटल की गाइनकॉलजिस्ट का दिया एक मेडिकल सर्टिफिकेट जमा किा था जिसमें उनके प्रेगनेंट होने की बात कही गई थी। कोर्ट में जैसमिन के वकील आसी बिनीश ने दिल्ली हाईकोर्ट के उस फैसले का उल्लेख किया जिसमें प्रेग्नेंसी की वजह से क्लासेस मिस करने वाली फीमेल स्टूडेंट्स को परीक्षा देने की अनुमति दी गई थी।
लेकिन, केरल हाईकोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले से असहमति जताई और कहा कि प्रेगनेंसी अचानक आने वाली स्थिति नहीं है और छात्रा को अपनी प्राथमिकताएं तय करनी चाहिए थीं। जस्टिस विनोद चंद्रन ने यह कहते हुए जैसमिन की याचिका खारिज कर दी कि उनके लिए प्रेंगनेंसी एक ऑप्शनल चॉइस थी और कॉलेज के फैसले को मातृत्व अधिकारों का हनन नहीं कहा जा सकता है।
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