गोरखपुर के टाउनहाल मैदान में लगी खादी एवं ग्रामोद्योग प्रदर्शनी में मधुबनी पेंटिंग की साडिय़ां और कश्मीर से आई पश्मीना शॉल की कारीगरी लोगों की आंखें खोल रहीं हैं। मधुबनी पेंटिंग बहुत ही बारीक कला है जो साड़ी पर उकेरी गई है। इस साड़ी को तैयार करने में एक व्यक्ति को एक महीने लग जाते हैं।
भागलपुर के मो. शकील अंसारी व शाहरुख खान सिल्क की साडिय़ां व कपड़े लेकर खादी एवं ग्रामोद्योग प्रदर्शनी में आए हैं। उनके पास मधुबनी पेंटिंग वाली कई साडिय़ां हैं। वह बताते हैं कि साडिय़ों पर मधुबनी पेंटिंग की शुरुआत नई है। अभी यह बिहार के मधुबनी और भागलपुर में ही बनाई जाती हैं। पहली बार वह इसे गोरखपुर लेकर आए हैं। इन साडिय़ों की कीमत 5500 से 13 हजार रुपये तक है। तसर सिल्क 5500, राव सिल्क 6010, तसर सात हजार व वाटिक प्रिंट की साडिय़ां 11 हजार रुपये की हैं। इन सभी साडिय़ों व कपड़ों पर 30 फीसद की छूट है।
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क्या है मधुबनी पेंटिंग
मधुबनी चित्रकला लोक विश्वासों, संस्कारों व धार्मिक क्रिया-कलापों के मध्य विकसित हुई। इसमें लोक जीवन के सभी पक्ष समाहित हैं। विवाह, कोहबर, डोली, राम-सीता, चौथ चंदा, मधु श्रावणी, वट सावित्री आदि जीवन के विविध पक्षों की धार पर यह कला परवान चढ़ी। महिलाएं इसे दीवाल पर फूल-पत्तों के रंग से बनाती थीं। जिस तरह पूर्वांचल में कोहबर बनाने में गोबर व सिंदूर का प्रयोग होता है। इस कला की विशेषता यह है कि चित्रों के बीच खाली स्थान नहीं छोड़ा जाता है। खाली स्थान को पुष्प, लता, बेल, टहनियों, पत्तों, अवतारी पुरुष के चिह्नों, सांप, मछली, कछुआ, हाथी, तोता, मोर व अन्य मनमोहक आकृतियों से भर दिया जाता है।
आकर्षित कर रही पश्मीना शॉल की कारीगरी
प्रदर्शनी में कश्मीर के ग्रामोद्योगी पश्मीना शॉल लेकर आए हैं। पश्मीना शॉल की रेंज पांच हजार रुपये से शुरू होकर दो लाख रुपये तक जाती है। प्रदर्शनी में 25 हजार रुपये तक की शॉल उपलब्ध है। शॉल पर जरी वर्क वाली शॉल काफी आकर्षक और महंगी है। पश्मीना शॉल लेकर कश्मीर से आए फार्रूख अहमद ने बताया कि इसपर जरी वर्क करने में तीन कारीगरों को तीन से लेकर छह माह तक का वक्त लगता है। जो शॉल जितने ज्यादा दिन में तैयार होती है, उतनी महंगी हो जाती है। इस शॉल की विशेषता है कि यह जितनी पुरानी होती जाती है, उतनी ही अधिक शरीर को गरम करती है।
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