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स्पेस वार की तरफ अमेरिका ने बढ़ाया कदम, तैयार करेगा स्पेस फोर्स और वेपंस

स्पेस वार की तरफ अमेरिका ने बढ़ाया कदम, तैयार करेगा स्पेस फोर्स और वेपंस

अमेरिका अब अपनी सुरक्षा के लिए अमेरिकन आर्म्‍ड फोर्स की छठी ब्रांच बनाने की तैयारी कर रहा है। यह ब्रांच जमीन के लिए नहीं बल्कि स्‍पेस के लिए तैयार की जाएगी। यही वजह है कि इस ब्रांच को स्‍पेस फोर्स का नाम दिया गया है। इसके लिए अमेरिका स्‍पेस वैपंस भी तैयार करेगा। अमेरिकी राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप ने इसका पूरा मसौदा तैयारा कर इसकी घोषणा भी कर दी है। ट्रंप के इस फैसले ने न सिर्फ अमेरिकियों को चौंकाने का काम किया है बल्कि पूरी दुनिया उनके इस फैसले से हैरत में है। हालांकि इन सब के बावजूद अभी तक इस बात का खुलासा नहीं किया गया है कि अमेरिका इसके तहत किस तरह से अपनी युद्ध की का‍बलियत को बढ़ाएगा।स्पेस वार की तरफ अमेरिका ने बढ़ाया कदम, तैयार करेगा स्पेस फोर्स और वेपंस

सांसदों का साथ 
ट्रंप के इस फैसले का रिपब्लिकन सांसद समर्थन तो कर रहे हैं लेकिन वह इस बात से भी इंकार कर रहे हैं कि इसके माध्‍यम से अमेरिका स्‍पेस में कदम जमा रहे चीन और रूस को पछाड़ने की कोशिश कर रहा है या बढ़त बनाने की कोशिश में है। हालांकि ट्रंप इस बात को जरूर मान रहे हैं कि अमेरिका स्‍पेस में बढ़त बनाने की जुगत में लगा है। वहीं दूसरी और ट्रंप प्रशासन के कुछ सदस्‍य ट्रंप की इस योजना पर सवाल भी खड़े कर रहे हैं। आपको बता दें कि इस नई आर्म्‍ड फोर्स की शुरुआत पहले से ही हो रही थी। इसका खुलासा अमेरिका के रक्षा मंत्री जेम्‍स मैटिस ने पिछले वर्ष अक्‍टूबर में सदन को लिखे एक पत्र में किया था। उस वक्‍त उन्‍होंने इसको अमेरिका के लिए बड़ा चैलेंज है। इससे जुड़ा एक बड़ा तथ्‍य ये भी है कि यह अमेरिकी बजट में बड़ा इजाफा भी करने वाला है। वहीं एक तथ्‍य यह भी है कि इस फोर्स का मकसद संयुक्‍त युद्धनी‍ति में अमेरिकी की मौजूदगी और उसकी बढ़त है।

ट्रंप की योजना में सबसे बड़ी बाधा 
ट्रंप की इस योजना में सबसे बड़ी बाधा भी स्‍पेस ही बनने वाली है। इसकी वजह ये है कि स्‍पेस को किसी भी मिलिट्री ऑपरेशन के लिए इस्‍तेमाल नहीं किया जा सकता है। लिहाजा यहां का फिजीकल एनवायरमेंट ट्रंप की योजना के मुताबिक सटीक नहीं बैठता है। आपको बता दें कि धरती पर कुछ ऐसी जगह हैं जहां पर युद्ध की गतिविधियों को पूरी तरह से प्रतिबंधित किया गया है। इसमें अंटार्कटिका, नोर्वे आदि शामिल हैं। यहां आपको ये भी बता दें कि अंटार्कटिका को विश्‍व बिरादरी ने रिसर्च के मकसद से युद्धक क्षेत्रों से अलग किया है। वहीं नोर्वे में दुनिया का सबसे बड़ा बीज बैंक है, जो बर्फ की सतह से कई मीटर नीचे स्थित है। यहां पर धरती पर मौजूद लगभग हर वनस्‍पति के बीज मौजूद हैं। लिहाजा एक समझौते के तहत इसको भी इसी श्रेणी में रखा गया है। इसी तरह से स्‍पेस भी बि‍ल्‍कुल अलग है।

पहले भी बनाई है स्‍पेस के लिए योजना 
हालां‍कि अमेरिका स्‍पेस को लेकर इस तरह की पहली योजना नहीं बना रहा है। वर्षों पूर्व अमेरिका ने चांद पर भीषण तबाही वाला बम बनाने की भी कथित योजना बनाई थी। इसका विरोध होने पर इस योजना को शुरू में ही बंद कर दिया गया था। ट्रंप की इस योजना में दूसरी बड़ी दिक्‍कत स्‍पेसक्राफ्ट और इसमें लगने वाले अत्‍यधिक फ्यूल को लेकर होगी। लिहाजा इस पर अमेरिका को ज्‍यादा काम करना होगा और इसको अधिक कारगर बनाना होगा। इस योजना को अमलीजामा पहनाने के लिए सरकार को कई स्‍तरों पर मिलकर काम करना होगा। इसमें तकनीकी दक्षता के साथ-साथ कई चीजों की दरकार होगी। ट्रंप की इस योजना पर डेमोक्रेट सदस्‍यों को भी कोई ज्‍यादा ऐतराज नहीं है। लेकिन यह भी सही है कि वह इसकी फंडिंग को रोकने की कोशिश कर सकते हैं।

अमे‍रिका और रूस की निगाह
अमेरिका के इस प्रोजेक्‍ट पर जानकार मानते हैं कि चीन और रूस जैसे बड़े देश कभी नहीं चाहेंगे कि अमेरिका इस क्षेत्र में उनसे आगे निकल जाए। यहां पर आपको ये बताना भी जरूरी होगा कि चीन भी अपने स्‍पेस मिलिट्री प्रोग्राम पर पिछले दो वर्षों से काम कर रहा है। यहां ये भी काफी दिलचस्‍प है कि एक ओर जहां अमेरिका स्‍पेस फोर्स बनाने की राह में आगे बढ़ रहा है वहीं दूसरी ओर भारत आउटर स्‍पेस में हथियारों की रेस के सख्‍त खिलाफ है। यूं भी मौजूदा समय में रूस और चीन का अमेरिका के साथ कई मुद्दों पर 36 का आंकड़ा है।

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