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जम्मू-कश्मीर की महबूबा मुफ्ती सरकार गिराने के लिए बीजेपी ने यही समय क्यों चुना? सवा तीन साल से पीडीपी के साथ सरकार चला रही बीजेपी के सामने अचानक कौन सी मजबूरी आन पड़ी? जानकारों की मानें तो इसके पीछे 2019 के चुनाव की रणनीति छिपी है. फिलहाल जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल शासन लागू कर दिया गया है. बीजोपी को था कोर वोट बैंक खो देने का खतरा! 2019 के लोकसभा चुनाव में अब साल भर से भी कम का वक्त बचा है और बीजेपी महबूबा को मनाते-मनाते अपना कोर वोट बैंक गंवा न दे, इसका खतरा लगातार बना हुआ था. कठुआ रेप कांड के बाद बीजेपी जम्मू के लोगों की नाराजगी झेल ही रही है. इसका संक्रमण चुनाव के पहले पूरे देश में फैलने न पाए, इसको लेकर बीजेपी के रणनीतिकार लगातार मंथन कर रहे थे. इसलिए बीजेपी के पास महबूबा सरकार से हाथ खींचने के अलावा कोई चारा नहीं था. बिगड़ती जा रही थी कानून व्यवस्था जम्मू-कश्मीर में पीडीपी-बीजेपी सरकार बनने के बाद कानून व्यवस्था सुधरने की बजाय लगातार बिगड़ती जा रही थी. इसका सबसे ताजा उदाहरण रमजान के दौरान सुरक्षाबलों के एकतरफा युद्धविराम के दौरान दिखा. महबूबा मुफ्ती की मांग पर केंद्र ने सुरक्षाबलों ने कश्मीर घाटी में सर्च ऑपरेशन औऱ संदिग्ध आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन रुकवा दिया, लेकिन आतंकी वारदातें नहीं रुकीं. रमजान में घटी नहीं बल्कि बढ़ीं आतंकी वारदातें रमजान महीने के पहले 16 अप्रैल से 15 मई तक 25 आतंकी हमले हुए. लेकिन रमजान के दौरान यानि 16 मई से 15 जून के दौरान ये तीन गुना बढ़कर 66 हो गईं. रमजान से पहले महीने में आतंकियों ने पांच ग्रेनेड अटैक किए, लेकिन रमजान के महीने में 22 ग्रेनेड अटैक हुए. रमजान से पहले पांच सुरक्षाकर्मी शहीद हुए, जबकि रमजान के दौरान सात सुरक्षाकर्मियों ने शहादत दी. 29 जून से शुरू हो रही है अमरनाथ यात्रा रमजान महीना तो भारी अशांति के बीच गुजर गया. अब 29 जून से अमरनाथ यात्रा शुरू होने वाली है. खुदा न खास्ता इस यात्रा के दौरान कोई अनहोनी हो गई तो बीजेपी को जवाब देना मुश्किल पड़ सकता था. पिछले साल अमरनाथ यात्रियों की बस पर आतंकी हमले में गुजरात के सात श्रद्धालुओं की मौत के बाद बीजेपी को अपने कैडर और देश को जवाब देने में लेने के देने पड़ गए थे. फिर सुनाई दे सकती है धारा 370 की गूंज महबूबा मुफ्ती सरकार से हटने के बाद बीजेपी 2019 के अपने एजेंडे पर ज्यादा फोकस कर सकेगी. सवा तीन साल से धारा 370 पर बीजेपी नेता मौन हो गए थे. अब 23 जून को श्यामाप्रसाद मुखर्जी की पुण्यतिथि पर बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह कश्मीर जा रहे हैं. जहां फिर धारा 370 की गूंज सुनाई दे सकती है, जो कम से कम अगले साल के आम चुनाव तक जाएगी. अब अपने मन मुताबिक काम करेगी केंद्र सरकार! कहा ये भी जा रहा है कि घाटी में राज्यपाल शासन लागू होने के बाद केंद्र सरकार अपने मन मुताबिक काम करेगी. आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन ऑल आउट रफ्तार पकड़ेगा तो अलगाववादी नेताओं पर भी कोई मुरव्वत नहीं होगी. पत्थरबाज़ों के लिए महबूबा के दिल में जो हमदर्दी थी, उस पर सुरक्षाबल अब खुलकर चोट करेंगे. इस एकतरफा और अचानक किए फैसले से बीजेपी की राष्ट्रवादी छवि पर फिर से शान भी चढ़ेगी. वहीं कठुआ गैंगरेप जैसे विवाद सामने आने के बाद बीजेपी की छवि खराब हुई थी. जम्मू के लोग पूरे मामले में सीबीआई जांच की मांग कर रहे थे, लेकिन महबूबा मुफ्ती ने इस मांग को ठुकरा दिया था, जिससे बीजेपी की राजनीतिक जमीन भी कमजोर हुई थी.

क्या PDP से गठबंधन तोड़ने के पीछे छिपी है 2019 के चुनाव की रणनीति?

जम्मू-कश्मीर की महबूबा मुफ्ती सरकार गिराने के लिए बीजेपी ने यही समय क्यों चुना? सवा तीन साल से पीडीपी के साथ सरकार चला रही बीजेपी के सामने अचानक कौन सी मजबूरी आन पड़ी? जानकारों की मानें तो इसके पीछे 2019 के चुनाव की रणनीति छिपी है. फिलहाल जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल शासन लागू कर दिया गया है.जम्मू-कश्मीर की महबूबा मुफ्ती सरकार गिराने के लिए बीजेपी ने यही समय क्यों चुना? सवा तीन साल से पीडीपी के साथ सरकार चला रही बीजेपी के सामने अचानक कौन सी मजबूरी आन पड़ी? जानकारों की मानें तो इसके पीछे 2019 के चुनाव की रणनीति छिपी है. फिलहाल जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल शासन लागू कर दिया गया है.  बीजोपी को था कोर वोट बैंक खो देने का खतरा!  2019 के लोकसभा चुनाव में अब साल भर से भी कम का वक्त बचा है और बीजेपी महबूबा को मनाते-मनाते अपना कोर वोट बैंक गंवा न दे, इसका खतरा लगातार बना हुआ था. कठुआ रेप कांड के बाद बीजेपी जम्मू के लोगों की नाराजगी झेल ही रही है. इसका संक्रमण चुनाव के पहले पूरे देश में फैलने न पाए, इसको लेकर बीजेपी के रणनीतिकार लगातार मंथन कर रहे थे. इसलिए बीजेपी के पास महबूबा सरकार से हाथ खींचने के अलावा कोई चारा नहीं था.  बिगड़ती जा रही थी कानून व्यवस्था  जम्मू-कश्मीर में पीडीपी-बीजेपी सरकार बनने के बाद कानून व्यवस्था सुधरने की बजाय लगातार बिगड़ती जा रही थी. इसका सबसे ताजा उदाहरण रमजान के दौरान सुरक्षाबलों के एकतरफा युद्धविराम के दौरान दिखा. महबूबा मुफ्ती की मांग पर केंद्र ने सुरक्षाबलों ने कश्मीर घाटी में सर्च ऑपरेशन औऱ संदिग्ध आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन रुकवा दिया, लेकिन आतंकी वारदातें नहीं रुकीं.  रमजान में घटी नहीं बल्कि बढ़ीं आतंकी वारदातें  रमजान महीने के पहले 16 अप्रैल से 15 मई तक 25 आतंकी हमले हुए. लेकिन रमजान के दौरान यानि 16 मई से 15 जून के दौरान ये तीन गुना बढ़कर 66 हो गईं.  रमजान से पहले महीने में आतंकियों ने पांच ग्रेनेड अटैक किए, लेकिन रमजान के महीने में 22 ग्रेनेड अटैक हुए. रमजान से पहले पांच सुरक्षाकर्मी शहीद हुए, जबकि रमजान के दौरान सात सुरक्षाकर्मियों ने शहादत दी.  29 जून से शुरू हो रही है अमरनाथ यात्रा  रमजान महीना तो भारी अशांति के बीच गुजर गया. अब 29 जून से अमरनाथ यात्रा शुरू होने वाली है. खुदा न खास्ता इस यात्रा के दौरान कोई अनहोनी हो गई तो बीजेपी को जवाब देना मुश्किल पड़ सकता था. पिछले साल अमरनाथ यात्रियों की बस पर आतंकी हमले में गुजरात के सात श्रद्धालुओं की मौत के बाद बीजेपी को अपने कैडर और देश को जवाब देने में लेने के देने पड़ गए थे.  फिर सुनाई दे सकती है धारा 370 की गूंज  महबूबा मुफ्ती सरकार से हटने के बाद बीजेपी 2019 के अपने एजेंडे पर ज्यादा फोकस कर सकेगी. सवा तीन साल से धारा 370 पर बीजेपी नेता मौन हो गए थे. अब 23 जून को श्यामाप्रसाद मुखर्जी की पुण्यतिथि पर बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह कश्मीर जा रहे हैं. जहां फिर धारा 370 की गूंज सुनाई दे सकती है, जो कम से कम अगले साल के आम चुनाव तक जाएगी.  अब अपने मन मुताबिक काम करेगी केंद्र सरकार!  कहा ये भी जा रहा है कि घाटी में राज्यपाल शासन लागू होने के बाद केंद्र सरकार अपने मन मुताबिक काम करेगी. आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन ऑल आउट रफ्तार पकड़ेगा तो अलगाववादी नेताओं पर भी कोई मुरव्वत नहीं होगी. पत्थरबाज़ों के लिए महबूबा के दिल में जो हमदर्दी थी, उस पर सुरक्षाबल अब खुलकर चोट करेंगे.  इस एकतरफा और अचानक किए फैसले से बीजेपी की राष्ट्रवादी छवि पर फिर से शान भी चढ़ेगी. वहीं कठुआ गैंगरेप जैसे विवाद सामने आने के बाद बीजेपी की छवि खराब हुई थी. जम्मू के लोग पूरे मामले में सीबीआई जांच की मांग कर रहे थे, लेकिन महबूबा मुफ्ती ने इस मांग को ठुकरा दिया था, जिससे बीजेपी की राजनीतिक जमीन भी कमजोर हुई थी.
बीजोपी को था कोर वोट बैंक खो देने का खतरा!

2019 के लोकसभा चुनाव में अब साल भर से भी कम का वक्त बचा है और बीजेपी महबूबा को मनाते-मनाते अपना कोर वोट बैंक गंवा न दे, इसका खतरा लगातार बना हुआ था. कठुआ रेप कांड के बाद बीजेपी जम्मू के लोगों की नाराजगी झेल ही रही है. इसका संक्रमण चुनाव के पहले पूरे देश में फैलने न पाए, इसको लेकर बीजेपी के रणनीतिकार लगातार मंथन कर रहे थे. इसलिए बीजेपी के पास महबूबा सरकार से हाथ खींचने के अलावा कोई चारा नहीं था.

बिगड़ती जा रही थी कानून व्यवस्था

जम्मू-कश्मीर में पीडीपी-बीजेपी सरकार बनने के बाद कानून व्यवस्था सुधरने की बजाय लगातार बिगड़ती जा रही थी. इसका सबसे ताजा उदाहरण रमजान के दौरान सुरक्षाबलों के एकतरफा युद्धविराम के दौरान दिखा. महबूबा मुफ्ती की मांग पर केंद्र ने सुरक्षाबलों ने कश्मीर घाटी में सर्च ऑपरेशन औऱ संदिग्ध आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन रुकवा दिया, लेकिन आतंकी वारदातें नहीं रुकीं.

रमजान में घटी नहीं बल्कि बढ़ीं आतंकी वारदातें

रमजान महीने के पहले 16 अप्रैल से 15 मई तक 25 आतंकी हमले हुए. लेकिन रमजान के दौरान यानि 16 मई से 15 जून के दौरान ये तीन गुना बढ़कर 66 हो गईं.

रमजान से पहले महीने में आतंकियों ने पांच ग्रेनेड अटैक किए, लेकिन रमजान के महीने में 22 ग्रेनेड अटैक हुए. रमजान से पहले पांच सुरक्षाकर्मी शहीद हुए, जबकि रमजान के दौरान सात सुरक्षाकर्मियों ने शहादत दी.

29 जून से शुरू हो रही है अमरनाथ यात्रा

रमजान महीना तो भारी अशांति के बीच गुजर गया. अब 29 जून से अमरनाथ यात्रा शुरू होने वाली है. खुदा न खास्ता इस यात्रा के दौरान कोई अनहोनी हो गई तो बीजेपी को जवाब देना मुश्किल पड़ सकता था. पिछले साल अमरनाथ यात्रियों की बस पर आतंकी हमले में गुजरात के सात श्रद्धालुओं की मौत के बाद बीजेपी को अपने कैडर और देश को जवाब देने में लेने के देने पड़ गए थे.

फिर सुनाई दे सकती है धारा 370 की गूंज

महबूबा मुफ्ती सरकार से हटने के बाद बीजेपी 2019 के अपने एजेंडे पर ज्यादा फोकस कर सकेगी. सवा तीन साल से धारा 370 पर बीजेपी नेता मौन हो गए थे. अब 23 जून को श्यामाप्रसाद मुखर्जी की पुण्यतिथि पर बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह कश्मीर जा रहे हैं. जहां फिर धारा 370 की गूंज सुनाई दे सकती है, जो कम से कम अगले साल के आम चुनाव तक जाएगी.

अब अपने मन मुताबिक काम करेगी केंद्र सरकार!

कहा ये भी जा रहा है कि घाटी में राज्यपाल शासन लागू होने के बाद केंद्र सरकार अपने मन मुताबिक काम करेगी. आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन ऑल आउट रफ्तार पकड़ेगा तो अलगाववादी नेताओं पर भी कोई मुरव्वत नहीं होगी. पत्थरबाज़ों के लिए महबूबा के दिल में जो हमदर्दी थी, उस पर सुरक्षाबल अब खुलकर चोट करेंगे.

इस एकतरफा और अचानक किए फैसले से बीजेपी की राष्ट्रवादी छवि पर फिर से शान भी चढ़ेगी. वहीं कठुआ गैंगरेप जैसे विवाद सामने आने के बाद बीजेपी की छवि खराब हुई थी. जम्मू के लोग पूरे मामले में सीबीआई जांच की मांग कर रहे थे, लेकिन महबूबा मुफ्ती ने इस मांग को ठुकरा दिया था, जिससे बीजेपी की राजनीतिक जमीन भी कमजोर हुई थी.

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