घटना झारखंड में हुई, लेकिन इसका मुकदमा बिहार में दर्ज हो गया। जी हां, यह सच है। हम बात कर रहे हैं बिहार सरकार के वरीय अधिकारियों के विवेक और उनकी कार्यशैली की, जिसने राज्य को शर्मसार किया है। मामला राष्ट्रपति कार्यालय से आए एक पत्र को बिना पढ़े-समझे मुकदमा दर्ज कर लेने तथा इस बाबत सूचना मिलने के बाद भी भूल सुधार नहीं करने का है।
भूल से दर्ज किया मुकदमा, अभी तक नहीं हुआ सुधार
विदित हो कि राष्ट्रपति कार्यालय ने भूलवश एक मामले में झारखंड के मुख्य सचिव के बदले बिहार के मुख्य सचिव के नाम से पत्र भेज दिया और पत्र में वर्णित तथ्यों को पढ़े बिना ही बिहार सरकार के गृह विभाग के लोक शिकायत निवारण कार्यालय में मुकदमा दर्ज हो गया। वादी को सुनवाई की तारीख भी भेज दी गई। राष्ट्रपति कार्यालय ने त्रुटि को सुधार कर पुन: बिहार सरकार को अवगत कराया, लेकिन बिहार में मुकदमा चालू है और अगली सुनवाई 21 जनवरी को है। खास बात यह भी कि गृह विभाग के अपर मुख्य सचिव आमिर सुबहानी ने मामले में अनभिज्ञता जाहिर की है।
मानवाधिकार कार्यकर्ता ने राष्ट्रपति को लिखा पत्र
दरअसल, 15 नवंबर 2018 को रांची में एक कार्यक्रम दौरान झारखंड पुलिस ने समाचार संकलन करने गए विभिन्न समाचारपत्रों और चैनलों के पत्रकारों एवं छायाकारों की पिटाई कर दी थी। इस संबंध में मानवाधिकार कार्यकर्ता विशाल रंजन दफ्तुआर ने राष्ट्रपति को मामले में हस्तक्षेप करने के लिए 21 नवंबर 2018 को पत्र लिखा था।
राष्ट्रपति कार्यालय ने भूलवश बिहार सरकार को दिया निर्देश
27 नवंबर को राष्ट्रपति कार्यालय, दिल्ली ने मामले की जांच करने के लिए बिहार सरकार के गृह विभाग के मुख्य सचिव को पत्र भेजा। पत्र में दफ्तुआर का नाम, पता और मोबाइल नंबर भी दर्ज था। अधिकारियों ने पत्र में लिखे बिंदुओं पर गौर नहीं किया और न ही दफ्तुआर से बात की। सीधे गृह विभाग के लोक शिकायत निवारण में वाद दायर कर दिया।
बिहार सरकार को दी सूचना, पर नहीं किया भूल सुधार
नौ जनवरी को गृह विभाग का मैसेज पाकर दफ्तुआर भौंचक रह गए। उन्होंने तत्काल राष्ट्रपति कार्यालय को सूचित किया और वहां से एक दिन में त्रुटि सही करके झारखंड के मुख्य सचिव को मामले में सुनवाई करने के लिए पत्र भेजा गया। 10 जनवरी को दफ्तुआर ने मुख्यमंत्री, बिहार के सरकारी ई-मेल पर त्रुटि के संबंध में जानकारी दी। वह ई-मेल मुख्य सचिव और गृह सचिव को अग्रेतर कार्रवाई हेतु भेज दिया गया।
दोबारा नोटिस जारी कर सुनवाई के लिए बुलाया
इसके बावजूद गृह विभाग ने गलती नहीं सुधारी। पांच दिन बाद 15 जनवरी को दफ्तुआर को दोबारा नोटिस देकर 21 जनवरी की सुनवाई में उपस्थित होने के लिए बुलाया गया।