एक दौर था जब गजल उस्तादों की परंपरा और तबले और पेटी के साथ महज कुछ साजों के बीच चंद लोगों की महफिलों का हिस्सा थी. मेहदी हसन, गुलाम अली, बेगम अख्तर जैसे दिग्गज गजल गायकों की आवाज हर दिल अजीज की आवाज तो थी, लेकिन ये आवाजें कभी भी आम आदमी की जिंदगी में उस तरह से दखलअंदाजी नहीं कर पाई, उसके दुखों और दर्द के लिए संगीत का मरहम नहीं बन पाई, जो आवाज जगजीत सिंह की बनी.
यकीनन जगजीत सिंह गजल गायिकी की परंपरा में एक ऐसा नाम है और ऐसी आवाज है जिसने न केवल गजल को बदल दिया, उसके संगीत को बदल दिया बल्कि उसकी साज और संगीत दोनों को बदल दिया. बदलाव की ये बयार गजल के क्षेत्र में ऐसी थी कि 70 से 80 के दशक में जगजीत सिंह की आवाज गजल का पर्याय बन गई.
आज 8 फरवरी को ही जगजीत का जन्म हुआ था. 1941 को राजस्थान के गंगानगर में जगजीत पैदा हुए थे पहले उनका नाम जगमोहन था, लेकिन पिता के कहने पर उन्होंने अपना नाम बदल लिया. बचपन से उनके संगीत से शौक था, उन्होंने उस्ताद जमाल खान और पंडित छगनलाल शर्मा से संगीत की शिक्षा ली थी.
खालिस उर्दू जाननेवालों की मिल्कियत समझी जाने वाली, नवाबों-रक्कासाओं की दुनिया में झनकती और शायरों की महफिलों में वाह-वाह की दाद पर इतराती गजलों को आम आदमी तक पहुंचाने का श्रेय अगर किसी को दिया जाना हो तो जगजीत सिंह का ही नाम ज़ुबां पर आता है. उनकी गजलों ने न सिर्फ उर्दू के कम जानकारों के बीच शेरो-शायरी की समझ में इजाफा किया बल्कि ग़ालिब, मीर, मजाज, जोश और फिराक जैसे शायरों से भी उनका परिचय कराया.
1965 में बॉलीवुड में सिंगर बनने की तमन्ना लेकर जगजीत मायानगरी मुंबई पहुंचे. करियर के शुरुआत में जगजीत विज्ञापन फिल्मों में जिंगल गाया करते थे. इसी दौरान उनकी मुलाकात चित्रा से हुई और दोनों ने शादी कर ली. उसके बाद दोनों ने एक साथ कई एलबम में गाने गाए, उनकी जादूई आवाज लोगों के दिलों में उतर आई. जगजीत ने कई फिल्मों के लिए भी गाने गाए. 2003 में उन्हें भारत सरकार द्वारा कला के क्षेत्र में पद्दम भूषण से सम्मानित किया गया. 10 अक्टूबर 2011 में जगजीत सिंह इस दुनिया को छोड़कर चले गए, लेकिन उनकी आवाज आज भी जिंदा है.