इलाहाबाद।
नोएडा के सीईओ रमारमण के कई वर्ष से नोएडा में जमे रहने के खिलाफ दाखिल जनहित याचिका की सुनवाई 11 अगस्त को होगी।मुख्य न्यायाधीश डी.बी भोसले तथा न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की खण्डपीठ ने अखिल भारतीय मानव कल्याण एवं समाजोत्थान की जनहित की याचिका की सुनवाई करते हुए राज्य सरकार से पूछा है कि क्या राज्य में अन्य योग्य अधिकारी नहीं है। जिसकी नोएडा सीईओ पद पर तैनाती की जाए। एक अधिकारी को कई वर्षाें से नोएडा, ग्रेटर नोएडा में विभिन्न विभागों में तैनात रखने का क्या औचित्य है। नोएडा के अधिवक्ता का कहना था कि रमारमण 2010 से केन्द्र सरकार में प्रतिनियुक्ति पर थे। 2015 सितम्बर में इन्हें नोएडा का सीईओ नियुक्त किया गया है। अभी एक साल का भी समय नहीं बीता है। कोर्ट ने अपने अन्तरिम आदेश से पिछले छह वर्षाें से तैनाती को आधार मानते हुए पद का कार्य करने पर रोक लगा दी है। हालांकि नोएडा, ग्रेटर नोएडा व यमुना एक्सप्रेस वे अथारिटी के अध्यक्ष पद पर अन्य वरिष्ठ अधिकारी की नियुक्ति की गयी है। रमारमण केवल नोएडा के सीईओ ही रह गये हैं। कोर्ट ने पूछा है कि अन्तरिम आदेश के बाद सरकार ने नोएडा में तीन वर्ष से अधिक समय से तैनात अधिकारियों का तबादला कर दिया है। ऐसी कौन सी खास बात है कि सरकार एक अधिकारी को नोएडा में ही बनाये रखना चाहती है। याचिका की सुनवाई जारी है।
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