नई दिल्ली :
भारत परंपराओं, मान्यताओं व अंधविश्वासों का देश है। दक्षिणी अंडमान द्वीप में पुलिस व स्थानीय प्रशासन एक ऐसी दुविधा में है, जिससे वो चाहकर भी बाहर नहीं निकल सकते। दरअसल जारवा जनजाति सबसे पुरानी जनजातियों में से एक है। यह जनजाति आज भी अपने पुराने तौर-तरीकों को मानती है। पुलिस और प्रशासन को कड़े निर्देश दिए गए है कि वो इस जनजाति के किसी भी मामले में हस्तक्षेप न करे।
इनकी कुल आबादी 400 है, ये लोग करीब 50 हजार साल पहले अफ्रीका से यहां आकर बस गए थे। इनका कद छोटा और रंग काला होता है। 1998 तक तो हालात ऐसे थे कि ये लोग बिल्कुल अलग जीवन जीते थे और किसी भी बाहर वाले को देखते ही मार देते थे।
धीरे-धीरे ये लोग बाहरी लोगों के संपर्क में आए। लेकिन एक परंपरा जिसका ये अब भी पालन करते है, वो ये कि यदि इनके किसी भी बच्चे का रंग इनसे नहीं मिलता तो ये उसे मार देते है। साथ ही यदि कोई विधवा मां बन जाती है या बच्चा किसी बाहरी शख्स का होता है, तो ये उसे भी मार देते है।
हाल ही में इन्होने एक बच्चे को मार डाला, जिससे ये मामला फिर से सामने आया है। इस जनजाति पर लंबे समय से डॉ रतन चंद्राकर अध्ययन कर रहे है, उनका कहना है कि वो ये सब सालों से देखते आ रहे है, लेकिन इनकी परंपरा होने के नाते कभी दखल नहीं दिया।
इस बार एक शख्स जिसने आँखों से देखी थी ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी। बच्चा जन्म के पांच माह बाद अचानक गायब हो गया और बाद में उशे रेत में दफन पाया गया।
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