Friday , January 3 2025
 आज से नहीं 25 सितंबर से शुरू हो रहे है श्राद्ध, जानें क्यों इस दौरान नहीं किए जाते शुभ काम पितृपक्ष 

 आज से नहीं 25 सितंबर से शुरू हो रहे है श्राद्ध, जानें क्यों इस दौरान नहीं किए जाते शुभ काम पितृपक्ष 

 पितरों के तर्पण के लिए भाद्रपद महीने के कृष्णपक्ष के पंद्रह दिन पितृपक्ष कहे जाते हैं.  भाद्रपद के शुक्लपक्ष पूर्णिमा से पितृपक्ष शुरू होता है और यह अश्विन कृष्णपक्ष अमावस्या तक रहता है. इस समय पूर्वजों की शांति और उनकी तृप्ति के लिए पूजा-पाठ कराया जाता है. हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार पितृ दोष के कारण इंसान को कई बाधाओं का  सामना करना पड़ता है. पितृपक्ष के इन 16 दिनों में इंसान अपनी कर्मों को सुधारने और आगे कुल की रक्षा करने के लिए अपने पूर्वजों से प्रार्थना करता है. पितृपक्ष के दौरान शुभ कार्य या फिर कुछ नई खरीददारी करना वर्जित होता है. जानें इस धारणा के पीछे क्या कथा है.  आज से नहीं 25 सितंबर से शुरू हो रहे है श्राद्ध, जानें क्यों इस दौरान नहीं किए जाते शुभ काम पितृपक्ष 

क्यों नहीं की जाती है खरीदारी
श्राद्ध पक्ष को पितरों का कर्ज उतारने के समय के तौर पर देखा जाता है. ऐसे में यह माना जाता है कि हम पहले से ही पितरों के कर्ज में डूबे हैं और कर्ज में डूबा व्‍यक्ति नई वस्‍तु कैसे खरीद सकता है. वहीं कई लोगों पितृपक्ष में नई वस्‍तु की खरीद को अशुभ नहीं मानते. उनका यह मानना है कि पितृपक्ष में हमारे पूर्वज धरती पर आते हैं और आशीर्वाद देते हैं. ऐसे में नई वस्‍तुओं की खरीदारी से वो क्यों दुखी होंगे और इतने शुभ अवसर पर खरीदारी करने से पूर्वजों का आशीर्वाद ही मिलेगा. 

25 सिंतबर से शुरू हैं पितृपक्ष
पंडित दीपक दुबे ने जी न्यूज को बताया कि श्राद्ध कर्म 25 सिंतबर से शुरू हो रहे हैं. 24 सिंतबर को पूर्णिमा श्राद्ध है. हर महीने की पूर्णिमा और अमास्वया को श्राद्ध किया जा सकता है इसलिए आज आप श्राद्ध कर सकते हैं. लेकिन पितृपक्ष मंगलवार से शुरू होकर 9 अक्टूबर तक चलेगा. पितृपक्ष की पूजा और तर्पण चूंकि दोपहर में किया जाता है इसलिए मंगलवार सुबह से आप पूजा-पाठ शुरू कर सकते हैं. 

श्राद्ध का महत्व 
श्रद्धा के साथ जो शुभ संकल्प और तर्पण किया जाता है उसे ‘श्राद्ध’ कहते हैं. श्राद्ध के महत्व के बारे में कई प्राचीन ग्रंथों तथा पुराणों में वर्णन मिलता है. श्राद्ध का पितरों के साथ बहुत ही घनिष्ठ संबंध है. पितरों को आहार और अपनी श्रद्धा पहुंचाने का एकमात्र साधन श्राद्ध है. आज से नहीं 25 सितंबर से शुरू हो रहे है श्राद्ध, जानें क्यों इस दौरान नहीं किए जाते शुभ काम पितृपक्ष 

श्राद्ध संस्कार 
मृतक के लिए श्रद्धा से किया गया तर्पण, पिण्ड और दान ही श्राद्ध कहा जाता है और जिस मृत व्यक्ति के एक वर्ष तक के सभी और्ध्व दैहिक क्रिया-कर्म सम्पन्न हो जाते हैं, उसी को ‘पितर’ को पितर कहा जाता है. वायु पुराण में लिखा है कि ‘मेरे पितर जो प्रेतरुप हैं, तिलयुक्त जौ के पिण्डों से वह तृप्त हों. साथ ही सृष्टि में हर वस्तु ब्रह्मा से लेकर तिनके तक, चाहे वह चर हो या अचर हो, मेरे द्वारा दिए जल से तृप्त हों’. 

श्राद्ध का कारण 
प्राचीन साहित्य के अनुसार सावन माह की पूर्णिमा से ही पितर पृथ्वी पर आ जाते हैं. वह नई आई कुशा की कोंपलों पर विराजमान हो जाते हैं. श्राद्ध अथवा पितृ पक्ष में व्यक्ति जो भी पितरों के नाम से दान तथा भोजन कराते हैं अथवा उनके नाम से जो भी निकालते हैं, उसे पितर सूक्ष्म रुप से ग्रहण करते हैं. ग्रंथों में तीन पीढि़यों तक श्राद्ध करने का विधान बताया गया है. पुराणों के अनुसार यमराज हर वर्ष श्राद्ध पक्ष में सभी जीवों को मुक्त कर देते हैं. जिससे वह अपने स्वजनों के पास जाकर तर्पण ग्रहण कर सकते हैं. तीन पूर्वज पिता, दादा तथा परदादा को तीन देवताओं के समान माना जाता है. पिता को वसु के समान माना जाता है. रुद्र देवता को दादा के समान माना जाता है. आदित्य देवता को परदादा के समान माना जाता है. श्राद्ध के समय यही अन्य सभी पूर्वजों के प्रतिनिधि माने जाते हैं.

E-Paper

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com