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ऋषिकेश के मोहन लाल जोशी यवाओं के लिए मिसाल है। उन्होंने न सिर्फ होटल इंडस्ट्री में ऊंचार्इयां हासिल की

 यह कहानी है टिहरी जिले के घनसाली ब्लॉक के सौंला (बिनकखाल) गांव निवासी 56 वर्षीय मोहन लाल जोशी की। हालात से मजबूर होकर करीब तीन दशक पहले उन्हें दिल्ली का रुख करना पड़ा। वहां एक होटल में उन्हें 500 रुपये प्रतिमाह की नौकरी मिली। इसमें से 300 रुपये तो कमरे का किराया ही चला जाता था। फिर भी जोशी ने हार नहीं मानी और संघर्ष जारी रखा। आखिरकार एक मित्र की बदौलत उन्हें जापान जाने का मौका मिला। हालांकि, चुनौतियां वहां भी उनके साथ-साथ चल रही थीं। लेकिन, संघर्ष को अपना साथी बना चुके जोशी को कभी पीछे देखना गवारा नहीं था। नतीजा, एक दिन ऐसा भी आया, जब चुनौतियों को उनकी राह में सफलता की सीढ़ियां बनकर खड़ा होना पड़ा। आज जोशी देश-विदेश में कई होटलों के मालिक हैं और उनके संघर्षों से बनी राह पर सैकड़ों नौजवान अपने सपनों को साकार कर रहे हैं। 

दो भाई और तीन बहनों में तीसरे नंबर के मोहन लाल जोशी गांव के ही राजकीय इंटर कॉलेज से 12वीं करने के बाद रोजगार की तलाश में दिल्ली चले गए। वहां उन्होंने 500 रुपये की नौकरी शुरू की। पांच सौ कमाने के बाद उनके खर्चे के लिए सिर्फ 200 रुपये ही बचते थे। ऐसे में कभी भूखे सोकर तो कभी फुटपाथ पर उबले अंडे खाकर उन्होंने अपनी गुजर की। 

कुछ समय बाद हिमाचल और फिर दोबारा दिल्ली के ही एक होटल में उन्होंने नौकरी की। अब काम सीख लिया था तो उनकी तनख्वाह भी बढ़ गई। इसी बीच साथ में काम करने वाले एक कर्मचारी को जापान जाने का मौका मिला, लेकिन उसके पास पर्याप्त पैसे नहीं थे। लिहाजा, जोशी ने मित्रता निभाते हुए उसकी मदद की। इससे ये हुआ कि कुछ सालों बाद उस मित्र ने जोशी को भी जापान बुला लिया। जापान के जिस होटल में जोशी को नौकरी मिली, वहां उनसे ज्यादा अनुभवी लोग काम करते थे। सबकी एक ही तनख्वाह होने के कारण उन्होंने जब मालिक से इसकी शिकायत की तो उन्हें नौकरी से हाथ धोना पड़ा। 

बनाई जापानी भाषा पर मजबूत पकड़ 

इस बीच जोशी के भाई का आकस्मिक निधन हो गया और उन्हें स्वदेश लौटना पड़ा। मगर, जापान छोड़ते समय उन्होंने संकल्प लिया कि फिर वापस लौटकर इससे भी अच्छी नौकरी के लिए प्रयास करेंगे। इसके बाद तीन माह तक जोशी ने दिल्ली के एक होटल में मैनेजर की नौकरी करते हुए मैनेजमेंट की बारीकियां सीखीं। साथ ही जापानी भाषा पर भी मजबूत पकड़ बना ली। नतीजा, तीन माह बाद जब वह जापान के उसी होटल में पहुंचे और अपने अनुभव होटल मालिक से साझा किए तो मालिक ने उन्हें होटल का मैनेजर बना दिया। 

जोशी ने ईमानदारी के साथ अपने काम को अंजाम दिया तो मालिक का मुनाफा कई गुना बढ़ गया। सो, होटल मालिक ने जोशी को अपना पार्टनर बनाते हुए एक के बाद एक पूरे 21 होटल जापान में खोल दिए। दोनों के बीच सैद्धांतिक समझौता हुआ था कि 21वें होटल पर स्वामित्व जोशी का होगा, मगर ऐन वक्त पर जापानी पार्टनर समझौते से मुकर गया। 

‘इंडो टाइगर’ नाम से खोला अपना होटल 

सफलता का रास्ता देख चुके जोशी पार्टनरशिप टूटने से विचलित नहीं हुए, बल्कि अपनी मां जगनाथी देवी और पिता हरिकृष्ण जोशी के नाम को मिलाकर ‘जगहरि इंटरनेशनल’ कंपनी बनाई और जापान में ही ‘इंडो टाइगर’ नाम से अपना होटल खोल दिया। होटल चलाने के लिए उन्होंने अपने विश्वासपात्र परिचितों और रिश्तेदारों को नौकरी पर रखा। जरूरतमंदों को अच्छी नौकरी और पैसा मिला तो सभी ने मेहनत से काम करते हुए वर्ष 1999 में ‘इंडो टाइगर’ को नई पहचान दिला दी। इसके बाद दो अन्य होटल इसी नाम से जोशी ने खोल दिए। 

जापान से अमेरिका की ओर बढ़े कदम 

अब एक पार्टनर के साथ जोशी ने जापान से बाहर कदम बढ़ाते हुए अमेरिका के ब्रजीनिया शहर में भी ‘हॉर्बेश ऑफ इंडिया’ नाम से होटल खोला। इन होटलों और अपनी जान-पहचान के जरिए जोशी ने अपने गांव और रिश्तेदार और परिचितों के घरों में खाली बैठे युवाओं को अपने खर्च पर जापान और अन्य देशों में नौकरी दिलाई। आज उनके प्रयासों से सैकड़ों की संख्या में युवा विदेशों में अपना भविष्य संवार रहे हैं। 

मातृभूमि को बनाया कर्मभूमि 

तीन दशक तक विदेश में नौकरी और कारोबार करने के बाद जोशी ने अब मातृभूमि को ही अपनी कर्मभूमि बना लिया है। बकौल जोशी, ‘मैंने देहरादून, ऋषिकेश और भानियावाला में भी ‘इंडो टाइगर’ नाम से होटल खोले हैं। अब मेरा सपना अपने पैतृक गांव में स्थानीय युवाओं को रोजगार से जोड़ने का है। इसके लिए मैं संसाधन जुटा रहा हूं।’ 

30 साल पुराने शेफ मित्र को ढूंढ निकाला 

30 साल पहले दिल्ली के होटल में काम करने के दौरान जोशी की वहां शेफ का काम करने वाले धर्म सिंह के साथ गहरी दोस्ती हो गई थी। जोशी के जापान जाने के बाद धर्म सिंह भी पंजाब चले गए और वहां शेफ के रूप में अच्छा नाम कमाया। जोशी ने जब भानियावाला में ‘इंडो टाइगर’ होटल खोला तो उन्हें शेफ के लिए 30 साल पुराने दोस्त की याद आ गई। जानकारी जुटाई तो पता चला कि धर्म सिंह शेफ के रूप में पंजाब में किसी ब्रांड से कम नहीं हैं। जोशी ने संघर्ष के दिनों के इस साथी को अपने नए होटल में चीफ शेफ की नौकरी दे दी। बकौल धर्म सिंह, ‘होटल में हम दोनों मालिक और कर्मचारी नहीं, बल्कि सगे भाइयों की तरह अपने-अपने काम को अंजाम दे रहे हैं।’ 

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