रायपुर। राज्य के एचआईवी पीड़ितों को एआरटी सेंटर तक जाने, वहां से वापस घर आने के लिए बसों में किराया नहीं देना होगा। परिवहन विभाग ने इस संबंध में आदेश जारी कर दिया है। एचआईवी मरीजों को यह सुविधा उपलब्ध कराने वाला देश का पहला राज्य छत्तीसगढ़ है।राज्य एड्स नियंत्रण समिति से मिली जानकारी के मुताबिक राज्य में ड्राप आउट मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है। यानी मरीज दवाइयां लेने, फॉलोअप के लिए एआरटी सेंटर नहीं जा रहे। इससे एचआईवी पीड़ितों की मौत समय से पहले हो जाती है। मौत के बढ़ते आंकड़े को देखते हुए उसके कारण की तलाश की गई तो पता चला कि आर्थिक तंगी के चलते मरीज एआरटी सेंटर नहीं पहुंचते। समिति ने इस पर गहन शोध किया। फिर विचार किया गया कि क्यों न राज्य सरकार की विभिन्न योजनाओं से एचआईवी पीड़ितों को जोड़ा जाए, इससे वे मुख्य धारा में जुड़ा महसूस करेंगे और उनका आर्थिक बोझ भी कम होगा। 4 मई 2016 को मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एजेडों पर चर्चा हुई, जिसमें बसों में मुफ्त सफर भी एक था।नेशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन (नॉको) के मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ कोऑर्डिनेटर अजय सिंह का कहना है कि हमारा उद्देश्य एचआईवी पीड़ितों को एआरटी सेंटर तक लाना, जागरूक करना है। अभी कुछ और योजनाएं हैं, जिनका लाभ दिलवाने की कवायद जारी है। राज्य में एचआईवी पॉजिटिव की संख्या 21 हजार से अधिक है। नॉको के करीब 2 साल पहले हुए सर्वे के मुताबिक यह आंकड़ा 50 हजार से अधिक पहुंच सकता है। यहां पर हर वर्ग के एचआईवी पॉजिटिव हैं, जिन्हें ढूंढ़ने और जागरूक करने के लिए अलग-अलग प्रोजेक्ट संचालित किए जा रहे हैं। एचआईवी पीड़ितों को पहचान-पत्र मुहैया करवाया जाएगा, जो ग्रीन-कार्ड जैसा होगा। इसमें एआरटी नोडल अधिकारी और आरटीओ के साइन होंगे। कार्ड को ऐसा डिजाइन किया गया है कि उनकी पहचान उजागर नहीं होगी।