सियाराम पाण्डेय (शान्त)
भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अभी तीन दशक तक सत्ता में बने रहने के ख्वाहिशमंद हैं। इसकी बड़ी वजह यह है कि वे इस देश से गरीबी को मिटा देना चाहते हैं और इस निमित्त चुनाव जीतने को भाजपा का राष्ट्रीय कर्तव्य मान रहे हैं। वे पं. दीनदयाल उपाध्यााय के नक्शेकदम पर चलते हुए अंत्योदय के विकास की बात करते हैं। उनकी नजर में देश से गरीबी हटाने के लिए भाजपा को तीस साल और सत्ता में बने रहना होगा। मतलब गरीबी तभी हटेगी, जब भाजपा को मौका मिले। प्रधानमंत्री ने चुनाव जीतने को राष्ट्रीय कर्तव्य बताया है। अभी तक मताधिकार करना राष्ट्रीय कर्तव्य माना जाता था। लोगों को इसके लिए प्रेरित किया जाता था लेकिन यह पहला मौका है जब चुनाव को लेकर प्रधानमंत्री के स्तर पर इस तरह की बात कही गई है। नीति कहती है कि युद्ध और प्रेम में सब कुछ जायज है । पिछले कुछ वर्षों से यह बात राजनीति और उससे जुड़े दलों पर भी लागू होने लगी है। नरेंद्र मोदी इस सच से भी बखूबी वाकिफ हैं कि उनका विरोध अन्य राजनीतिक दल ही नहीं कर रहे, बल्कि उनके अपने दल में भी उनकी जड़ खोदने का उद्योग जारी है। राजनीतिक दलों ने तो एक तरह से उनके खिलाफ मोर्चा ही खोल रखा है। उन पर अपने चुनावी वायदों को पूरा न कर पाने के आरोप लग रहे हैं। काला धन की वापसी और हर व्यक्ति के खाते में 15 लाख डालने का उनका दावा हवा हवाई ही साबित हुआ है। महिलाओं की सुरक्षा को लेकर भी उन पर सवाल उठ रहे हैं। देश में महिलाओं पर अत्याचार और दुष्कर्म आदि की घटनाएं बढ़ी हैं। सबका साथ-सबका विकास का वादा उसी क्षण दम तोड़ देता है जब उन्हीं के दल के कुछ बड़बोले नेता मनमाना संभाषण करते हैं। पाकिस्तान प्रशिकि्षत आतंकवादी असलहों समेत भारत की सीमा में कब घुस आते हैं और हमें पता भी नहीं चलता। राजस्थान में हाल ही में पकड़े गए पाकिस्तानी जासूस नंदलाल ने तो और भी चौंकाने वाला बयान दिया है। वह पाकिस्तान से हिंदुस्तान तक कई किलो आरडीएक्स लेकर आ गया लेकिन जांच एजेंसियों को उसकी भनक तक नहीं लगी। इतना गाफिल तंत्र नरेंद्र मोदी को तीस साल और सत्ता में बने रहने में कितना सहायक हो सकता है, इस बावत भी तो विचार किया जाना चाहिए। सवाल उठता है कि तीस साल तक भाजपा का सत्ता में बने रहना क्या इतना आसान है? भले ही उसके पास 1,000 से अधिक विधायक हैं, 300 से अधिक सांसद हैं और 13 राज्यों में भाजपा और उसके सहयोगी दलों की सरकारें हैं लेकिन इतने ही से बात नहीं बनने वालीं। प्रधानमंत्री ने हर सांसद से एक गांव गोद लेने और उसे मॉडल गांव बनाने की बात कही थी। खुद भी वाराणसी के एक गांव जयापुर को गोद लिया था। सांसदों के गोद लिए गांवों के क्या हालात हैं, यह किसी से छिपा नहीं है। उन्होंने सांसदों से गांव-गांव जाने को कहा, कितने सांसदों ने उनकी इस सलाह पर अमल किया,यह उन्हीं से पूछा जा सकता है। प्रधानमंत्री द्वारा तय उपलब्धि मानक पर भाजपा सरकार के अनेक मंत्री विफल साबित हुए, क्या यह सत्ता शीर्ष पर बने रहने का प्रभावी मार्ग है।
भाजपा अध्यक्ष अमित शाह भी कहते हैं कि भाजपाइयों को इस निमित्त आगे बढ़ना है लेकिन आगे बढ़ने का कोई रोडमैप तो बनेगा। देश से गरीबी हटाने का दावा, उसे विकास के रास्ते पर ले जाने का दावा आजादी के दिन से ही हो रहा है लेकिन गरीबी अपनी जगह बदस्तूर कायम है। सड़क और भवन बनाना ही विकास नहीं है। विकास के लिए हर हाथ को काम मिलना चाहिए। रोटी, कपड़ा और मकान तो वक्ती जरूरत है ही, नैतिक उत्थान भी जरूरी है। इस देश की गुलामी का बहुत बड़ा कारण स्वार्थ और भ्रष्टाचार भी रहा है। अपनों का विश्वासघात ही देश को गुलाम बनाता है। अंग्रेजों ने लंबे समय तक फूट डालकर इस देश पर राज किया और अब वही काम राजनीतिक दल कर रहे हैं। जाति और धर्म की राजनीति को, आरक्षण और सुविधाओं की राजनीति को आखिर क्या कहा जाएगा? जाति आधारित चुनावी रूपरेखा क्या विकास का सही मॉडल है, इसका जवाब तो मिलना ही चाहिए।