मैं किसी पार्टी का प्रचार नहीं करुंगा. न लेफ्ट के लिए और न सपा, बसपा के लिए. मैं अपनी पीएचडी पूरी कर रहा हूं. उसी पर ध्यान है. पीएचडी के बाद बेरोजगारों की लाइन में लगकर रोजगार तलाश करुंगा. रोजगार पाकर खुद को अपने पांव पर खड़ा करुंगा. मैं फेस वाली राजनीति से सहमत नहीं हूं. देश की समस्या को फेस बनाईए.
यूपी चुनाव के बारे में जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार से पूछने पर उनके यही शब्द थे. वामदलों ने कन्हैया को अपने स्टार प्रचारकों में शामिल किया था. वजह पूछने पर कन्हैया कहते हैं कि ‘चुनाव एक माध्यम है समाज के अंदर चीजों को लागू करवाने का. वह सामाजिक आंदोलन नहीं है. यूपी के जो सवाल हैं उसे लेकर कोई आंदोलन नहीं है. जातीय उत्पीड़न के खिलाफ भी कोई आंदोलन नहीं है, इसलिए मैं इससे दूर रहना चाहता हूं’. कन्हैया का मानना है कि चुनाव में उतरते ही उनकी धार कम हो सकती है.
न्यूज 18 हिंदी डॉटकॉम से बातचीत में कन्हैया ने कहा कि मैं बीजेपी या मोदी जी के खिलाफ नहीं हूं. मानसिकता के खिलाफ हूं. उस विचारधार के खिलाफ हूं, जिसे मोदी जी आगे बढ़ा रहे हैं. जो विचारधारा लोकतंत्र विरोधी है. समानता विरोधी मानसिकता के खिलाफ हूं.
अखिलेश यादव के ‘काम बोलता है’ के सवाल पर कन्हैया कहते हैं कि इंजीनियरिंग करने वाला व्यक्ति साबुन बेच रहा है. बिहार से भी बदतर है बुंदेलखंड की हालत. उत्तर प्रदेश में बड़ा वर्कफोर्स है. वहां से पलायन सबसे बड़ी समस्या है. ऐसी पार्टी वहां परिवर्तन लाना चाहती है जो शिवसेना के साथ है. वही शिवसेना जो यूपी के लोगों को भइया कहकर मारती है.