सियाराम पांडेय ‘शांत’
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगर डाल-डाल चल रहे हैं तो कांग्रेस पात-पात। केंद्र सरकार चाहती है कि पूरे देश का एक बजट हो लेकिन कांग्रेस को उसका यह तजुर्बा रास नहीं आ रहा है। केंद्र सरकार ने रेल बजट अलग से पेश न किए जाने को हरी झंडी दे दी है। केंद्रीय कैबिनेट से भी इस आशय का प्रस्ताव पास हो गया है लेकिन इससे कांग्रेस बौखला गई है। केंद्र सरकार ने इससे रेल मंत्रालय को एक झटके में होने वाले खरबों रुपये के फायदे भी गिनाए हैं। ऐसे में कांग्रेस खुलकर तो इसका विरोध नहीं कर सकती लेकिन उसके द्वारा शुरू गई अलग-अलग बजट परंपरा का अस्तित्व समाप्त हो, यह उसे बेहद नागवार गुजरा है। शायद इसीलिए कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने अब किसान बजट पेश करने का राग आलापा है।
भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने भी किसानों के लिए की जा रही उनकी यात्रा का यह कहकर विरोध किया है कि देश में 6 दशक तक कांग्रेस का शासन रहा है और उसमें भी लंबे समय तक उनके परिवार के लोग सत्तासीन रहे हैं। अगर कांग्रेस रंचमात्र भी किसानों की हितैषी रही होती तो इस देश का किसान आज प्रगति के शिखर पर होता। राहुल गांधी इन दिनों उत्तर प्रदेश के किसानों के बीच खाट पंचायत कर रहे हैं। कानपुर के घाटमपुर में आयोजित खाट पंचायत में उन्होंने कहा है कि आम बजट से पहले रेल बजट की तरह किसान बजट पेश किया जाए। कांग्रेस सदन में यह मुद्दा उठाएगी। उनका मानना है कि मौजूदा केंद्र सरकार किसानों को छल रही है। फसल बीमा का पैसा भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ रहा है। नौकरशाह किसानों का भाग्य तय कर रहे हैं। फसल का जितना भी नुकसान हो, किसानों को पूरा मुआवजा मिलना चाहिए। उनकी नजर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार ने उद्योगपतियों के एक लाख दस हजार करोड़ रुपये माफ कर दिए लेकिन वह किसानों के कर्ज माफ नहीं कर रही है। प्रधानमंत्री के पास विदेश यात्राओं और उद्यमियों से मिलने के लिए समय है लेकिन देश के किसान का दर्द जानने के लिए उनके पास समय नहीं है। यह सब कुछ इस अंदाज में कहा जा रहा है जैसे कि कांग्रेस के प्रधानमंत्री किसानों से अक्सर मिलते रहे हों। अगर कांग्रेस सचमुच किसानों की हितैषी थी तो उसने आज तक कृषि को उद्योग का दर्जा क्यों नहीं दिया । कृषि उत्पादों का हर साल समर्थन मूल्य वह खुद क्यों तय करती रही। किसानों का भविष्य नौकरशाहों द्वारा तय करने की विषबेल भी उसी की लगाई हुई है। किसानों के लिए बजट नहीं बनता है, इस बात को राहुल गांधी या कोई भी कांग्रेसी कैसे कह सकता है? क्या कांग्रेस ने अपने बजट में किसानों के लिए प्रावधान नहीं किया और यदि हां तो इसके लिए कौन जिम्मेदार है? किसान परेशान हैं। साल-दर-साल उन्हें बाढ़ और सूखे की विभीषिका झेलनी पड़ती है। उन्हें सहयोग की जरूरत है लेकिन कर्ज माफी तो इसका विकल्प नहीं है। कांग्रेस ने जब किसानों के 70 हजार करोड़ माफ किए थे तब लोकसभा चुनाव होने थे। यह किसानों के प्रति मनमोहन सरकार की आत्मीयता नहीं थी बल्कि एक लॉलीपाप था जिसमें किसान फंस गए। अचानक फिर कांग्रेस को किसानों की याद आई है तो वह भी ऐन चुनाव के वक्त पर। इससे पहले तो राहुल गांधी के पास भी किसानों के पास जाने का वक्त नहीं था। कर्ज माफी चाहे उद्योगपतियों की हो या किसानों की, उससे देश की अर्थव्यवस्था ही कमजोर होती है। सरकार किसी की भी हो, वह इतना प्रबंध तो करे ही कि किसान अपना कर्ज लौटाने के लिए खुद सक्षम हो सकें।