लखनऊ। हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने दारोगा भर्ती प्रक्रिया को निरस्त करने सम्बन्धी एकल पीठ के आदेश को उचित ठहराया है। हाईकोर्ट ने कहा कि चार हजार दस पदों पर दरोगा भर्ती की प्रक्रिया गैरकानूनी थी। लिहाजा फिर से लिखित परीक्षा करा कर सूबे में दरोगा भर्ती की जाए। हाइकोर्ट ने एकल पीठ के फैसले को सही ठहराते हुए राज्य सरकार की विशेष अपील को खारिज कर दिया है।
यह फैसला न्यायमूर्ति अमरेश्वर प्रताप शाही व न्यायमूर्ति देवेंद्र कुमार उप्पाध्यय की खंडपीठ ने राज्य सरकार व दारोगा भर्ती में चयनित उम्मीदवारों की और से दायर विशेष अपील को खारिज करते हुए दिए हैं। हाईकोर्ट ने एकल पीठ द्वारा क्षैतिज आरक्षण एवम नियमानुसार 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण दिए जाने के मुद्दे पर वर्ष 2015 में चयनित 4010 पदों की भर्ती को रद्द कर दिया था।
अदालत ने प्रदेश की सिविल पुलिस में दरोगा और प्लाटून कमांडर के पदों पर हुई भर्ती को चुनौती दिए जाने वाली याचिका को स्वीकार करते हुए पूरी चयन प्रक्रिया को रद्द कर दिया था। एकल पीठ ने अपने फैसले में कहा था कि लिखित परीक्षा फिर से करा कर भर्ती की जाये। एकल पीठ के इस आदेश को चुनौती देते हुए राज्य सरकार व चयनित अभ्यर्थियों ने विशेष अपील दायर की थी।
इस विशेष अपील का विरोध वरिष्ठ अधिवक्ता एस के कालिया व विधि भूषण कालिया ने करते हुए अदालत से कहा था कि वर्ष 2011 में जारी दारोगा चयन प्रक्रिया के 4010 पदों के लिए वर्ष 2015 में भर्ती की गई जिसमें 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण का लाभ दिया गया। विशेष अपील का विरोध करते हुए यह भी कहा गया कि नियमानुसार रिक्त पदों की संख्या के तीन गुने अभ्यर्थी ही लिखित परीक्षा में बैठ सकते है । लेकिन पुलिस भर्ती बोर्ड ने काफी अधिक सँख्या में अभ्यर्थियों को लिखित परीक्षा में बैठने का मौका दिया ।
यह भी कहा गया कि पिछड़े वर्ग के अभ्यर्थियों को उनके कोटे के अलावा सामान्य वर्ग के लिए आरक्षण का लाभ दिया गया था इससे कुल रिक्त पदों की लगभग 77 प्रतिशत सीटे आरक्षण की श्रेणी में आ गई । जबकि नियमानुसार 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण का लाभ नही दिया जा सकता। अदालत ने फैसला सुनाते हुए एकल पीठ के आदेश को बहाल रखा।