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अल्मोड़ा की बाल मिठाई, सिंगौड़ी और चॉकलेट देश ही नहीं, बल्कि विदेश में भी खासी मशहूर है। लोग सौगात के रूप में यही तीन मिठाइयां लेकर यहां से जाते हैं। यहां बाल मिठाई बनाने का इतिहास लगभग सौ साल पुराना है। इसके स्वाद और निर्माण के परंपरागत तरीके को निखारने का श्रेय मिठाई विक्रेता स्व. नंद लाल साह को जाता है, जिसे आज भी खीम सिंह मोहन सिंह रौतेला और जोगालाल साह के प्रतिष्ठान संवार रहे हैं। बाल मिठाई को आसपास के क्षेत्र में उत्पादित होने वाले दूध से निर्मित खोए से तैयार किया जाता है। इसे बनाने के लिए खोए और चीनी को एक निश्चित तापमान पर पकाया जाता है। लगभग पांच घंटे तक इसे ठंडा करने के बाद इसमें रीनी और पोस्ते के दाने चिपकाए जाते हैं। जिसे बाद में छोटे-छोटे टुकड़ों में काटा जाता है। ऐसा ही बेजोड़ स्वाद सिंगौड़ी का भी है। सिंगौड़ी मालू के पत्ते में लपेटी जाती है और इसे कोन का आकार दिया जाता है। यहां के परंपरागत व्यजनों का लुत्फ भी सैलानी आसानी से उठा सकते हैं।

देश विदेश में खासी मशहूर है अल्मोड़ा की येे मिठाइयां

अल्मोड़ा की बाल मिठाई, सिंगौड़ी और चॉकलेट देश ही नहीं, बल्कि विदेश में भी खासी मशहूर है। लोग सौगात के रूप में यही तीन मिठाइयां लेकर यहां से जाते हैं। यहां बाल मिठाई बनाने का इतिहास लगभग सौ साल पुराना है। अल्मोड़ा की बाल मिठाई, सिंगौड़ी और चॉकलेट देश ही नहीं, बल्कि विदेश में भी खासी मशहूर है। लोग सौगात के रूप में यही तीन मिठाइयां लेकर यहां से जाते हैं। यहां बाल मिठाई बनाने का इतिहास लगभग सौ साल पुराना है।    इसके स्वाद और निर्माण के परंपरागत तरीके को निखारने का श्रेय मिठाई विक्रेता स्व. नंद लाल साह को जाता है, जिसे आज भी खीम सिंह मोहन सिंह रौतेला और जोगालाल साह के प्रतिष्ठान संवार रहे हैं।    बाल मिठाई को आसपास के क्षेत्र में उत्पादित होने वाले दूध से निर्मित खोए से तैयार किया जाता है। इसे बनाने के लिए खोए और चीनी को एक निश्चित तापमान पर पकाया जाता है। लगभग पांच घंटे तक इसे ठंडा करने के बाद इसमें रीनी और पोस्ते के दाने चिपकाए जाते हैं।     जिसे बाद में छोटे-छोटे टुकड़ों में काटा जाता है। ऐसा ही बेजोड़ स्वाद सिंगौड़ी का भी है। सिंगौड़ी मालू के पत्ते में लपेटी जाती है और इसे कोन का आकार दिया जाता है। यहां के परंपरागत व्यजनों का लुत्फ भी सैलानी आसानी से उठा सकते हैं।

इसके स्वाद और निर्माण के परंपरागत तरीके को निखारने का श्रेय मिठाई विक्रेता स्व. नंद लाल साह को जाता है, जिसे आज भी खीम सिंह मोहन सिंह रौतेला और जोगालाल साह के प्रतिष्ठान संवार रहे हैं।

बाल मिठाई को आसपास के क्षेत्र में उत्पादित होने वाले दूध से निर्मित खोए से तैयार किया जाता है। इसे बनाने के लिए खोए और चीनी को एक निश्चित तापमान पर पकाया जाता है। लगभग पांच घंटे तक इसे ठंडा करने के बाद इसमें रीनी और पोस्ते के दाने चिपकाए जाते हैं। 

जिसे बाद में छोटे-छोटे टुकड़ों में काटा जाता है। ऐसा ही बेजोड़ स्वाद सिंगौड़ी का भी है। सिंगौड़ी मालू के पत्ते में लपेटी जाती है और इसे कोन का आकार दिया जाता है। यहां के परंपरागत व्यजनों का लुत्फ भी सैलानी आसानी से उठा सकते हैं।

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