रिजर्व बैंक ने कहा है कि ऊंचे फंसे कर्ज और उसे कवर करने के लिये अपर्याप्त प्रावधान होने के साथ साथ पूंजी संबंधी नियामकीय जरूरतों अथवा जोखिम पूंजी नियमों में किसी भी तरह की रियायत दिया जाना बैंकों के साथ ही समूची अर्थव्यवस्था के लिये घातक हो सकता है. रिजर्व बैंक की ताजा रिपोर्ट में यह कहा गया है. बासेल- तीन नियमों में विभिन्न प्रकार के कर्ज के लिये जोखिम प्रावधान की सिफारिश की गई है. ये सिफारिशें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देखी गई सकल डिफाल्ट दर (सीडीआर) और रिकवरी दर के आधार पर की गई हैं. लेकिन भारत में ये दरें अंतरराष्ट्रीय औसत के मुकाबले काफी ऊंची हैं. रिजर्व बैंक की ‘‘बैंकिंग क्षेत्र में रुझान एवं प्रगति’’ नामक रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है.
रिपोर्ट में चेतावनी देते हुये कहा है कि इस लिहाज से बासेल के जोखिम प्रबंधन नियमों को ही लागू करना हमारे बैंकों की ऋण संपत्तियों के वास्तविक जोखिम को कम करके आंक सकता है. इसमें कहा गया है कि फंसे कर्ज के समक्ष जरूरी प्रावधान का मौजूदा स्तर हो सकता है कि संभावित नुकसान को पूरा करने के लिये काफी नहीं हो. ऐसे में संभावित नुकसान को खपाने के लिये पूंजी की पर्याप्तता एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया है.
रिपोर्ट में रेखांकित किया गया है कि इस बात को मानने की आवश्यकता है कि घरेलू बैंकिंग प्रणाली में फंसे कर्ज के समक्ष उचित प्रावधान और उसके समक्ष उपयुक्त पूंजी स्तर अनुपात की कमी बनी हुई है. हालांकि, दिवाला एवं ऋण शोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) और फंसी संपत्तियों के समाधान के लिये रिजर्व बैंक की संशोधित रूपरेखा से इस स्थिति में कुछ सुधार आया है.
रिपोर्ट में इस बात पर भी गौर किया गया है कि कुछ बैंकरों की तरफ से नियामकीय पूंजी आवश्यकताओं को कम करने पर जोर दिया गया है. वित्त मंत्रालय का एक वर्ग भी इस पर जोर दे रहा है. रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर उर्जित पटेल और सरकार के बीच यह तनाव का मुद्दा रहा है. इसके चलते ही इसी महीने उर्जित पटेल ने अचानक पद से इस्तीफा दे दिया था.
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