जगदलपुर। बस्तर के कांगेर आरक्षित वनखंड के लगभग 299 हेक्टेयर में सूरन (जिमीकंद) का जंगल फैला है, लेकिन अधिक खुजलाने वाला होने के कारण लोग इसका उपयोग नहीं कर पा रहे हैं। कृषि महाविद्यालय कुम्हरावंड के वैज्ञानिक इस पर शोध कर रहे है, ताकि लोग इसका उपभोग कर सके।बस्तर के वनों में सूरन बहुतायत से पाया जाता है, लेकिन जंगल में उपजने वाले सूरन के कंद का उपयोग लोग नहीं करते जिला मुख्यालय से 20 किमी दूर नानगूर- नेतानार चौक के पास, जगदलपुर वन परिक्षेत्र अंर्तगत कांगेर आरक्षित वनखंड के कक्ष क्रमांक 1773 और 1774 में करीब 299 हेक्टेयर में सूरन का जंगल फैला हुआ है। यहां सूरन के पौधे एक फीट से लेकर सात फीट तक ऊंचे हैं, इसलिए पूरे इलाके में सूरन ही नजर आता है। जिला आयुर्वेद चिकित्सालय के आयुर्वेद चिकित्सक केके शुक्ला बताते हैं कि सूरन कंद को आमतौर पर जिमीकंद भी कहते हैं इसका अंग्रेजी नाम वाइल्ड क्रोम है।सब्जी और औषधि के रूप में इसका उपयोग होता है इसके कंद में प्रोटीन, वसा, कार्बोदित, क्षार, कैल्शियम, फास्फोरस, लौह तत्व और विटामिन ए और बी पाया जाता है। ओक्सेलेट एसिड के कारण यह कच्चा खाने पर खुजली करता है इसके सेवन से श्वांसरोग, खांसी, आमबात, बवासीर, आंतों में दर्द, कृमिरोग दूर करने तथा यकृत क्रिया ठीक करने, दुर्बलता आदि दूर करने हेतु होता है।कांगेर आरक्षित वनखण्ड में सूरन जंगल शहीद गुण्डाधूर कृषि अनुसंधान केन्द्र व कृषि महाविद्यालय के डीन एससी मुखर्जी बताते हैं कि बस्तर में पाए जाने वाले कुछ विशेष प्रजाति के जिमीकंद का चयन कर इनसे श्रीपद्मा और गजेन्द्रा नामक दो नई किस्म तैयार की गई है यह खुजलाता भी नहीं है बस्तर के वनों में बड़ी संख्या में जंगली सूरन उपजता है लेकिन इसमें ओक्सेलेट जैसे खुजलाने वाला एसिड अधिक पाया गया है इसलिए लोग इसे नहीं खा रहे है जिमीकंद की गिनती लोकप्रिय सब्जी के रूप में होती है। बस्तर सूरन पर जारी है कृषि वैज्ञानिक इस दिशा में गंभीरता से काम कर रहे हैं।