लंदन। इराक युद्ध के समय ब्रिटेन के प्रधानमंत्री रहे टोनी ब्लेयर के एक सहायक का कहना है कि यह युद्ध गैरकानूनी था। गौरतलब है कि एक शिलकॉट रिपोर्ट में इराक युद्ध में ब्रिटेन की भूमिका के खिलाफ टिप्पणी की गई है। यह रिपोर्ट बुधवार को जारी की गई है। वर्ष 2003 में अमेरिका के नेतृत्व में इराक के खिलाफ युद्ध शुरू हुआ था, जिसमें ब्रिटेन भी शामिल हो गया था। तत्कालीन लेबर सरकार में दूसरे नंबर की हैसियत रखने वाले जॉन प्रेस्कॉट ने संडे मिरर अखबार में प्रकाशित एक लेख में इस युद्ध को गैरकानूनी बताया है। इराक युद्ध में ब्रिटेन के शामिल होने से संबंधित जाँच रिपोर्ट (शिलकॉट रिपोर्ट ) में युद्ध में शामिल होने के तत्कालीन प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर के फैसले को दोषपूर्ण ठहराते हुए कहा गया है कि साल 2003 में इराक के तानाशाह सद्दाम हुसैन को अपदस्थ करने के लिए अमेरिका के नेतृत्व में किये गए हमले में ब्रिटेन का शामिल होना अंतिम उपाय नहीं था और यह दोषपूर्ण खुफिया जानकारी पर आधारित था। 2009 में इस मामले की अधिकारिक जाँच शुरू हुई और जाँच समिति के अध्यक्ष जॉन शिलकॉट ने कहा कि ब्रिटेन ने इराक पर हमले में शामिल होने से पहले सभी शांतिपूर्ण विकल्पों को नहीं तलाशा था। शिलकॉट की जांच रिपोर्ट में कहा गया कि ब्लेयर ने तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज डब्ल्यू बुश को हमले से आठ माह पहले एक संदेश भेजा था, जिसमें उन्होंने लिखा था कि जो भी हो, मैं आपके साथ रहूँगा । ब्लेयर के पूर्व सहायक प्रेस्कॉट फिलहाल हाउस ऑफ लॉर्डस के सदस्य हैं। उन्होंने लेख में लिखा है कि मैं युद्ध में जाने के फैसले के साथ आजीवन जियूंगा और यह मेरे शेष जीवन के लिए बेहद तकलीफदायक होगा। उन्होंने लिखा है कि वर्ष 2004 में संयुक्त राष्ट्र के तत्कालीन महासचिव कोफी अन्नान ने कहा कि इराक युद्ध का मुख्य उद्देश्य व्यवस्था में बदलाव था, इसलिए यह गैरकानूनी था। प्रेस्कॉट ने लिखा है कि बहुत ही दुख और पीड़ा के साथ मैं अब मानता हूं कि वह सही थे। इसी सप्ताह ब्लेयर ने इस संघर्ष में हुई गल्तियों के लिए दुख और अफसोस जाहिर करते हुए माफी मांगी थी। लेकिन उन्होंने यह भी कहा था कि युद्ध सही था और दुनिया इराकी तानाशाह सद्दाम को हटाए बिना सुरक्षित नहीं रहती। वर्तमान में लेबर पार्टी के नेता जेरेमी कॉरबिन ने युद्ध के लिए हामी भरने के दुर्भाग्यपूर्ण फैसले के लिए पार्टी की ओर से माफी मांगी थी। अमेरिकी और ब्रिटिश सैनिकों के आक्रमण के बाद छह साल में इराक में करीब 150,000 इराकियों की जान गई और देश में ऐसी अराजकता फैली कि देश इस्लामिक स्टेट जैसे जिहादी गुटों के पनपने के लिए सुरक्षित जगह बन गया। इस पूरे प्रकरण में 179 ब्रितानी सैनिक भी मारे गए थे।