सियाराम पांडेय ”शांत”
भारतीय संविधान इस देश के हर नागरिक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार देता है। किसी की भी जुबान पर ताला नहीं लगाया जा सकता लेकिन जुबान को भाला भी तो नहीं बनने दिया जा सकता। हर अभिव्यक्ति की अपनी सीमा होती है। भाषाई मर्यादा होती है। किसी को भी ऐसी बात कहने का कोई अधिकार नहीं हैं जिससे किसी का दिल दुखता हो। हिंसा और फसाद का, नफरत और वैमनस्य का वातावरण बनता हो। गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है कि हरिहर निंदा सुनहिं जे काना। होंहि पाप गौघात समाना। मतलब जनविरोधी, लोक विरोधी और राष्ट्रद्रोह की बातों को कहना तो अपराध है ही, उसे सुनना भी अपराध है। वक्ता और श्रोता दोनों ही बराबर के दोषी हैं। उन्हें नहीं पता कि वे लोक का कितना नुकसान कर रहे हैं। भड़काऊ भाषण की इजाजत तो इस देश का संविधान भी नहीं देता। यह इस देश का दुर्भाग्य है कि इस देश के नेता अपने राजनीतिक भाषण के लिए अपनी वाणी से विषवमन करने वालों को भी शांतिदूत करार दे देते हैं। इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ. जाकिर नाईक इन दिनों विवाद के केंद्र में है। केंद्र सरकार की उन पर और उनकी संस्था पर भृकुटि तनी हुई है। गुप्तचर एजेंसियां यह खंगालने में जुटी हैं कि जाकिर नाइक के भड़काऊ उपदेशों और आतंकवादी संगठनों के बीच रिश्ता क्या है? जाकिर के उपदेशों से आतंकवादी कितना प्रभावित हैं और अगर नहीं हैं तो उनकी बेवसाइट पर उनके संगठन इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन का लिंक कैसे है? खुफिया तंत्र को पर शक तो तभी हो गया था जब मुंबई हमले के सूत्रधार हाफिज सईद के आतंकी संगठन जमात उल दावा की बेवसाइट पर इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन का लिंक पाया गया था। यह अलग बात है कि 26 11 के आतंकी हमले के बाद जमात उल दावा ने अपना नाम और पता दोनों ही परिवर्तित कर लिया था। हालांकि जाकिर नाइक ने अयोध्या में विवादित बाबरी ढांचे के विध्वंस के बाद ही अल्पसंख्यकों को हिंदुओं के खिलाफ भड़काना शुरू कर दिया था। उसे बाहर के देशों से वित्तीय अनुदान भी मिलने लगे थे जिसका उपयोग वे भारत विरोधी गतिविधियों में कर रहे हैं। उनके हालिया बयान हर मुसलमान को आतंकवादी हो जाना चाहिए कि भारत ही नहीं, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आलोचना हो रही है।बांग्लादेश के ढाका स्थित एक कैफे में हमला करने वाले दो संदिग्धों ने तो खुद को जाकिर नाइक से प्रेरित बताया है। बांग्लादेश सरकार ने भारत से आग्रह किया है कि वह जाकिर के भाषणों की सीडी की जांच करे जबकि इसके विपरीत जाकिर का तर्क है कि बांग्लादेश सरकार को उनके संभाषणों पर कोई आपत्ति नहीं है। संभव है कि पकड़े गए संदिग्ध उनके विचारों से प्रभावित हों, उनके फैन हों लेकिन इसमें उनका कोई दोष नहीं है।कुछ हद तक उनकी बात पर यकीन किया जा सकता है। अभिप्रेरित तो कोई भी किसी से भी हो सकता है और पकड़े जाने के बाद तो अपराधी बहुत कुछ कहता है तो क्या उसकी बात को सच मान लिया जाना चाहिए। संभवत: इसी तरह के तर्क मुस्लिम धर्मगुरु फरंगी महली ने भी दिए हैं। अगर पुलिस ने ढाका हमले की संदिग्धों की बात पर यकीन कर लिया होता तो जाकिर नाइक कठघरे में होते। अपराधी की बात पर यकीन करना और उसकी बातों से सूत्र तलाशना दोनों अलग-अलग बातें हैं। भारतीय खुफिया तंत्र इसी पर काम कर रहा है। वह भारत में दिए गए उनके संभाषणों की सीडी खंगाल रहा है, उसमें यह जानने-समझने की कोशिश कर रहा है कि जाकिर नाइक ने कब-कहां देशद्रोहपूर्ण आपत्तिजनक वक्तव्य दिए हैं।रही बात, जाकिर नाइक के स्पष्टीकरण की तो मुसलमानों की सबसे बड़ी धार्मिक संस्था देवबंद की दारुल उलूम ने भी जाकिर नाइक के उपदेशों पर अंगुली उठाई थी। उसने जाकिर को मुस्लिम युवकों को भड़काने और गुमराह करने वाला बताया था। दारूल उलूम ने भी जाकिर नाइक के भाषणों पर , उसके टीवी प्रसारण पर अविलंब रोक लगाए जाने की अपील की थी लेकिन तत्कालीन सरकार ने इस पर रोक लगाना तक मुनासिब नहीं समझा। मुंबई पुलिस के एक बड़े अधिकारी ने भी जाकिर नाइक के खिलाफ तत्कालीन कांग्रेस सरकार को दस्तावेजी साक्ष्य उपलब्ध कराए लेकिन उस पर कार्रवाई करना तो दूर, सरकार ने मामले को ही ठंडे बस्ते में डाल दिया। वर्ष 2002 से आज तक जाकिर नाइक अपने भड़काऊ संभाषणों की बदौलत मुस्लिम युवकों को गुमराह कर अपना उल्लू सीधा करते रहे और सरकार उनके कारनामों को नजरंदाज करती रही। आज जब पानी सिर से ऊपर बहने लगा है तो सरकार को जाकिर नाइक के विवादित बोल का असर मालूम पड़ा है। वह पीस टीवी के प्रसारण पर रोक लगा रही है। उनके भाषणों का प्रसारण करने वालों पर कार्रवाई की बात कर रही है।दरअसल यह सब बहुत पहले होना चाहिए था लेकिन अब भी अगर कार्रवाई समग्रता में होती है तो उसका स्वागत किया जाना चाहिए। जब जागे तभी सबेरा। व्यक्ति को कर्मफल तो भुगतना ही पड़ता है। जैसी करनी वैसा फल आज नहीं तो निश्चय कल। जाकिर नाइक या उन जैसी तथाकथित बौद्धिक सोच रखने वाला कोई भी व्यक्ति इसका अपवाद कैसे हो सकता है? सरकार को यह देखना होगा कि और भी कितने जाकिर है जो युवाओं को भटकाने का काम कर रहे हैं। शांति और अमन के नाम पर नफरत और वैमनस्य का यह खेल यथाशीघ््रा बंद हो, इसी में देश और समाज का व्यापक हित है। जाकिर नाइक के समर्थकों ने पीस टीवी के प्रसारण पर प्रतिबंध लगाए जाने का विरोध भी किया है और सरकार को इसके गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी भी दी है लेकिन वे यह भूल गए है कि अंध श्रद्धा दुख देती है। भारतीय दर्शन कहता है कि सुनो सबकी, करो मन की। इसका मतलब है कि अपने विवेक चक्षुओं को खुला रखो। रहीम ने तो पहले ही चेता दिया है कि सच मानी देखी कहै, सुनी न मानै कोय। अंतर-अंगुली चार कौ सांच-झूठ में होय। इतने बड़े तत्वदर्शन को हम भारतीय क्यों नहीं समझ पाते। जाति-धर्म के झगड़े हमें कहां ले जाएंगे, कभी इस बावत भी सोचा है।सरकारों की नीयत पर सवाल उठाना आसान है ,अपने गिरेबां में भी तो झांके।