भारत में कई तरह की प्रथाएं होती हैं जो कई बार बेहद ही अजीब भी होती हैं. ये कह सकते हैं कि भारत के कुछ गांव ऐसे हैं जहां अपने अलग ही रिवाज चलते हैं जो हमारे लिए बेहद ही अजीब होते हैं. आज ऐसे ही एक गांव के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं जहां का रहन सहन एकदम ही अलग है और यहां की प्रथा के बारे में सुनकर आपको हैरानी होगी लेकिन कहीं ना कहीं ये प्रथा सही भी लगेगी.
आपको बता दें, ये गाँव कहीं और नहीं बल्कि मध्य प्रदेश में ही है जहां कोई भी महिला विधवा नहीं होती. जी हाँ, यहां विधवा होने की प्रथा नहीं है. मंडला जिले के बिहंगा गांव की कहानी कुछ ऐसी है जो दुनिया से ही अलग है. यहां आपको कोई भी महिला विधवा नहीं मिलेगी. दरअसल, ये इस गांव में गोंड जनजाति है जहां अगर किसी महिला के पति की मौत हो जाती है तो उन्हें विधवा की तरह जीवन गुजारने की जरूरत नहीं है बल्कि उसकी शादी घर में मौजूद किसी कुंवारे शख्स से कर दी जाती है.
इसमें बड़ी बात ये है कि शादी के लिए ये जरूरी नहीं कि महिला का जेठ या देवर ही हो. घर में अगर शादी लायक नाती पोते भी हो तो उनसे भी महिला की शादी कर दी जाती है. अगर कोई पुरुष शादी के लिए इनकार करता है या उपलब्ध नहीं है को दूसरी प्रक्रिया अपनाई जाती है. इसके अलावा अगर शादी न हो तो विधवा महिला के पति की दसवीं पर दूसरे घरों की महिलाएं चांदी की चूड़ी तोहफे में देती हैं जिसे पाटो कहा जाता है.
इस प्रक्रिया के बाद विधवा महिला को शादीशुदा मान लिया जाता है. जो महिला पाटो देती है उसी के घर विधवा महिला रहने चली जाती है. इसमें संबंध बनाना मुश्किल तो होता है लेकिन अगर कोई ऐसे संबंध बनाना चाहे तो उस समज को कोई आपत्ति नहीं होती