छठ, लोक आस्था और प्रकृति पूजा के उत्कृष्ट महापर्व के रूप में पहचान बना चुका है। यह एक ऐसा प्रकृति पर्व है, जिसकी सारी परंपराएं कुदरत को बचाने-बढ़ाने और उनके प्रति कृतज्ञता जताने का संदेश देती है। यह दुनिया का इकलौता ऐसा पर्व है जिसमें ना सिर्फ उगते हुए बल्कि डूबते सूर्य को भी नमन किया जाता है। अर्घ्य के दौरान ऐसी कोई भी चीज विसर्जित नहीं की जाती, जो नदियों में प्रदूषण बढ़ाए।
नहाय-खाय और खरना के बाद आज छठ व्रत के तीसरे दिन डूबते हुए सूर्य को जल और दूध से अर्घ्य दिया जाएगा। इस अवसर पर कई व्रती दंडवत करते हुए घाटों पर पहुंचते हैं और सूर्य के अस्ताचल में लुप्त होने तक कमर तक जल में खड़े रहकर हाथ जोड़े हुए प्रार्थना में लीन हो जाते हैं। छठ का व्रत बेहद कठिन है क्योंकि इसमें करीब 36 घंटे का निर्जल उपवास रखना होता है। छठ के दूसरे दिन यानी खरना की शाम को व्रती पूजा कर जो प्रसाद ग्रहण करते हैं उसके बाद वह सीधे छठ के चौथे दिन यानी उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद ही कुछ खाते पीते हैं। साथ ही इस व्रत में शुद्धता और पवित्रता का भी पूरा ध्यान रखा जाता है। लिहाजा इस व्रत को करने वाले लोगों को ईश्वर स्वरूप माना जाता है। इस दौरान प्रसाद के रूप में बांस की चचरी के बने सूपों और डालों में भरकर तरह-तरह के प्रसाद घाटों पर लाए जाते हैं।
अगली सुबह यानी छठ के चौथे दिन सुबह का अर्घ्य दिया जाता है जिसके साथ यह पर्व संपन्न हो जाता है। घाटों पर दोबारा पहुंचकर व्रती जल में खड़े होते हैं। सूर्योदय के कई घंटे पहले ही लोग घाटों पर जुटने लगते हैं। सूर्य के उदित होने तक अर्घ्य और पूजा-अर्चना का सिलसिला जारी रहता है।
ऐसी मान्यता है कि छठ माता भगवान सूर्य की बहन हैं और उन्हीं को खुश करने के लिए छठ पूजा की जाती है। सूर्यास्त के बाद, लोग अपने-अपने घर वापस आ जाते हैं। रात भर जागरण किया जाता है।
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