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68th Republic Day: गरीबी और गुमनामी की जिंदगी जीने वाले शख्‍स ने ‘तिरंगे’ का बनाया था डिजाइन

नई दिल्ली। गणतंत्र दिवस या स्वतंत्रता दिवस आते ही आजादी के प्रतीक राष्ट्र ध्वज तिरंगे के प्रति प्रेम, श्रद्धा और बलिदान की किस्से सबकी जुबान पर चढ़ जाते हैं। लेकिन बहुत सोचने पर भी उस शख्स का नाम हमारे दिमाग में नहीं आता जिन्होंने इस तिरंगे का डिजाइन हमको दिया। उनके जीवनकाल में उनको अपेक्षित सम्मान नहीं मिला और गुमनामी के अंधेरों में हमारे उस हीरो का नाम कहीं खो गया। उस गुमनाम हीरो का नाम पिंगाली वेंकैया है जिन्होंने तिरंगे का डिजाइन तैयार किया। आइए इस महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के बारे में जानते हैं। 
पिंगाली वेंकैया

दो अगस्त, 1876 को आंध्रप्रदेश में मछलीपत्तनम के निकट पिंगाली वेंकैया का जन्म हुआ था। 19 साल की अवस्था में उन्होंने ब्रिटिश आर्मी को ज्वाइन किया। जापानी, उर्दू समेत कई भाषाओं के जानकार पिंगाली की महात्मा गांधी से मुलाकात दक्षिण अफ्रीका में एंग्लो-बोअर युद्ध के दौरान हुई। उसके बाद वह स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बने और महात्मा गांधी से उनका नाता 50 से भी अधिक वर्षों तक बना रहा।
राष्ट्रीय ध्वज

1916-21 के पांच वर्षों के दौरान 30 देशों के राष्ट्रीय ध्वज पर पिंगाली वेंकैया ने गहराई से शोध किया। 1921 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सम्मेलन में उन्होंने राष्ट्रीय ध्वज की अपनी संकल्पना को पेश किया। उसमें दो रंग लाल और हरा क्रमश: हिंदू और मुस्लिम दो प्रमुख समुदायों का प्रतिनिधित्व करते थे। बाकी समुदायों के प्रतिनिधित्व के लिए महात्मा गांधी ने उसमें सफेद पट्टी का समावेश करने के साथ राष्ट्र की प्रगति के सूचक के रूप में चरखे को शामिल करने की बात कही। 1931 में इस दिशा में अहम फैसला हुआ। तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाने का प्रस्ताव पारित हुआ। उसमें मामूली संशोधनों के रूप में लाल रंग का स्थान केसरिया ने लिया। इसको 22 जुलाई, 1947 को संविधान सभा ने राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अंगीकार किया और आजादी के बाद यही तिरंगा हमारी अस्मिता का प्रतीक बना। बाद में रंग और उनके अनुपात को बरकरार रखते हुए चरखे की जगह केंद्र में सम्राट अशोक के धर्मचक्र को शामिल किया गया।

असाधारण योगदान

इस असाधारण 1963 बावजूद में पिंगाली वेंकैया का बेहद गरीबी की हालत में विजयवाड़ा में एक झोपड़ी में देहावसान हुआ योगदान के। समय के साथ समाज और काफी हद तक उनकी कांग्रेस पार्टी ने ही उनको भुला दिया। वर्षों बाद 2009 में उन पर एक डाक टिकट जारी हुआ। पिछले साल जनवरी में केंद्रीय मंत्री वेंकैया नायडू ने विजयवाड़ा के ऑल इंडिया रेडियो बिल्डिंग में उनकी प्रतिमा का अनावरण किया।

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