जुरासिक दौर (डायनासोर युग) की दुर्लभ वृक्ष प्रजाति ‘जिंको बाइलोबा’ का वजूद अब खत्म होने से बचाया जा सकेगा। लंबे शोध के बाद वैज्ञानिकों ने दुनिया के सबसे प्राचीन इस संकटग्रस्त पेड़ के ‘क्लोन’ तैयार करने में बड़ी कामयाबी हासिल कर ली है। खास बात कि वन अनुसंधान केंद्र कालिका (रानीखेत) में पौधालय स्थापित कर ‘क्लोन’ से अस्तित्व में आए नर व मादा पौधों के जरिये इस वनस्पति की वंशावली को विस्तार दिया जा रहा।
रअसल, धरती पर मानव सभ्यता की गवाह ‘जिंको बाइलोबा’ वृक्ष प्रजाति का वजूद संकट में है। भारत वर्ष में इसके मात्र 33 ही पेड़ बचे हैं। इनमें सर्वाधिक 15 पेड़ हिमालयी राज्य उत्तराखंड में हैं। मगर जिंकोफॉएट्रा डिवीजन के परिवार में शेष बचे एकमात्र ‘जिंको बाइलोबा’ का वंश बचाने में जीबी पंत हिमालयन शोध एवं पर्यावरण विकास संस्थान कोसी कटारमल (अल्मोड़ा) के वैज्ञानिकों को सफलता मिल गई है।
ऐसे तैयार किए क्लोन
संस्थान की वरिष्ठ शोध वैज्ञानिक एवं सेंटर फॉर इन्वायरमेंट एसिस्मेंट एंड क्लाइमेट चेंज की हेड प्रो. अनीता पांडे ने लगभग एक वर्ष तक कालिका (रानीखेत) स्थित डिवोनी युग के पेड़ ‘जिंको बाइलोबा’ मदर ट्री की जड़ों (राइजोस्फियर) में मौजूद सूक्ष्मजीवों का गहन अध्ययन किया। पौधे की बढ़वार, रोगों व शत्रु बैक्टीरिया से बचाने वाले ‘स्यूडोमोनासÓ मित्र बैक्टीरिया की पहचान की। उसे सुरक्षित निकाल प्रयोगशाला में उचित फॉर्मूलेशन में तैयार किया। तब मदर ट्री की परिपक्व टहनियां लेकर इस मित्र बैक्टीरिया की मदद से एक साथ कई ‘क्लोन’ तैयार कर लिए। इसमें प्रो. अनीता के साथ उनके शोधार्थी आशीष ध्यानी व संतोष कुमार सिंह की भी अहम भूमिका रही।
क्या है ‘जिंको बाइलोबा’
उत्तराखंड में देववृक्ष देवदार की तरह चीन का मूल धार्मिक वृक्ष। बौद्ध मठों में खास महत्व। इसकी पत्तियों का चीनी चिकित्सा पद्धति में लगभग डेढ़ हजार वर्षो से उपयोग। यहीं से इसके बीज जापान ले जाए गए।
स्मरण शक्ति बढ़ाने में रामबाण
‘जिंको बिलोबा’ को स्मरण शक्ति वृक्ष भी कहते हैं। इसकी पत्तियों में मौजूद जिंको लाइड्स व ग्लाइको साइड्स रसायन अल्जाइमर (भूलने की बीमारी), कैंसररोधी, जोड़ों का दर्द, किमोथैरेपी के दुष्प्रभाव कम करने, अवसाद समेत तमाम लाइलाज रोगों में रामबाण है।
तीन वर्षों तक पौधे को बच्चे की तरह पालेंगेे
शोध वैज्ञानिक प्रो. अनीता पांडे ने बताया कि जुरासिक अवधि की दुर्लभ इकलौती वृक्ष प्रजाति का वंश बचाने में यह बड़ी सफलता है। इसे जीवित जीवाश्म भी कहा जाता है। क्लोन तैयार कर तीन वर्षों तक पौधे को बच्चे की तरह पालेंगेे। कालिका वन अनुसंधान की मदद से हम इन्हें माकूल जगह पर लगाने के लिए लोगों को प्रेरित भी कर रहे। इसकी पत्तियों में पाया जाने वाला रसायन औषधीय गुणों वाले हैं। जिंको चाय स्मरण शक्ति बढ़ाने में सहायक है।
मादा पेड़ विलुप्त होने से बना संकट
शोध अधिकारी वन अनुसंधान केंद्र कालिका आशुतोष जोशी ने बताया कि जिंको बाइलोबा के प्राकृतिक पुनरोत्पादन में नर के साथ मादा पेड़ का होना जरूरी है तभी बीज बनेंगे। मगर मादा पेड़ विलुप्त हो रह इसीलिए अस्तित्व संकट में है। हमने लंबे शोध व अध्ययन बाद मादा पौधे तैयार किए। अब पौधालय में इन्हें संरक्षित कर खुद व पर्यावरणप्रेमियों को इनके पौधरोपण के लिए प्रेरित कर रहे। कह सकते हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारण जुरासिक दौर की वृक्ष प्रजाति पर संकट बढ़ा है।
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