प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निचली अदालतों द्वारा गरीब व्यक्तियों की जेल से रिहाई में बाधा डालने वाली मनमाने जमानत शर्तों के खिलाफ चेतावनी दी है। न्यायालय ने कहा कि यह ट्रायल कोर्ट की जिम्मेदारी है कि वह अभियुक्त को जमानत पर रिहा करने के लिए जमानतदार तय करते समय अभियुक्त की सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर विचार करें।
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हाईकोर्ट ने आगरा जिले के अरमान की जमानत अर्जी पर आदेश पारित करते हुए ट्रायल कोर्ट को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि जमानत देने के आदेशों को जमानत आवेदक की सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर विचार किए बिना निर्धारित मनमानी ज़मानत शर्तों के कारण जमानत आदेश विफल नहीं किया जाना चाहिए।
न्यायालय ने कहा कि कई लोग जो आर्थिक रूप से गरीब हैं या समाज के हाशिए पर पड़े वर्गों से हैं, वे ऐसी जमानत शर्तों का पालन करने में सक्षम नहीं हो सकते हैं। न्यायमूर्ति अजय भनोट ने कहा कि यह ट्रायल कोर्ट की जिम्मेदारी है कि वे जमानतदार तय करते समय आरोपित की सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर विचार करें।
हाईकोर्ट ने आदेश में कहा, “यह एक गम्भीर मामला प्रतीत होता है। समाज के हाशिए पर पड़े वर्गों या आर्थिक रूप से विपन्न लोगों की एक बड़ी संख्या ट्रायल कोर्ट द्वारा मनमाने ढंग से तय किए गए जमानतदारों की व्यवस्था करने या उन्हें प्रदान करने में असमर्थ है। इस स्थिति से निपटने के लिए संवैधानिक न्यायालयों ने लगातार माना है कि मनमाने ढंग से जमानत की मांग करके जमानत के अधिकार को पराजित नहीं किया जा सकता है। ट्रायल कोर्ट की यह जिम्मेदारी है कि वह अभियुक्त की सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर विचार करे और उसके अनुसार जमानतदारों को तय करे। कानून ने यांत्रिक तरीके से जमानतदारों का निर्धारण करने के खिलाफ चेतावनी दी है।
हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि जमानतें अरविंद सिंह बनाम यूपी राज्य से लेकर प्रधान सचिव गृह विभाग के मामले में पहले से जारी निर्देशों के अनुरूप तय की जाएं। अरविंद सिंह मामले में हाईकोर्ट ने जमानत पर शर्तें लगाने की यांत्रिक प्रक्रिया पर अंकुश लगाने के लिए विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किए थे।
अदालत ने यह टिप्पणी आगरा के अरमान को जमानत देते हुए की जो 13 सितम्बर 2020 से जेल में था। उस पर थाना एत्मादपुर, आगरा में यूपी गैंगस्टर एक्ट लगा है। याची ने जमानत के लिए हाईकोर्ट की शरण ली थी क्योंकि उसके खिलाफ दर्ज कई मामलों में से एक में निचली अदालत ने उसकी जमानत याचिका खारिज कर दी थी।
हाईकोर्ट ने यह देखते हुए उसे जमानत दे दी कि आरोपित ने अपना आपराधिक इतिहास बताया है। उसके भागने का खतरा नहीं है। उसने जांच और मुकदमे की कार्यवाही में सहयोग किया है। कोर्ट ने यह भी कहा कि उसके खिलाफ दर्ज अन्य आपराधिक मामलों में निचली अदालत द्वारा जमानत दिए जाने के बावजूद, जमानत पेश करने में असमर्थता के कारण आरोपित को जमानत पर रिहा नहीं किया गया। इसने न्यायालय को यह निर्देश देने के लिए प्रेरित किया कि वे उचित विचार-विमर्श के बाद तथा जमानत आवेदक की सामाजिक आर्थिक स्थिति पर विचार करने के बाद जमानतदार तय करें।
कोर्ट ने आगरा जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (डीएलएसए) को यह सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया कि आवेदक को जमानत पर रिहाई के लिए जमानत राशि जमा करने तथा अन्य औपचारिकताएं पूरी करने के लिए उचित कानूनी सहायता उपलब्ध कराई जाए।
हाईकोर्ट ने याद दिलाया कि अरविंद सिंह मामले में उसने पहले ही डीएलएसए को निर्देश दिया था कि वह उन कैदियों को कानूनी सहायता प्रदान करे, जो ट्रायल कोर्ट द्वारा निर्धारित जमानत राशि उपलब्ध कराने में विफल रहने के कारण जमानत आदेशों द्वारा दी गई स्वतंत्रता का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं।
डी.एल.एस.ए को ऐसे कैदियों को भारी जमानत मांगों को वापस लेने के लिए आवेदन दाखिल करने में मदद करने के लिए भी कहा गया है। अदालत ने कहा, “जिला विधिक सेवा प्राधिकरण और विद्वान ट्रायल कोर्ट ने इस मामले के तथ्यों में उपरोक्त निर्देशों का पालन नहीं किया है।“ न्यायालय ने कहा कि इस मामले में आवेदक को कानूनी सहायता न मिलने का तथ्य इस बात से स्पष्ट है कि वह 2024 तक जमानत के लिए हाईकोर्ट नहीं आ सका।
हाईकोर्ट ने आगरा के सम्बंधित जिला न्यायाधीश को निर्देश दिया कि वे न्यायालय द्वारा उठाए गए मुद्दों पर गौर करें तथा उच्च न्यायालय की विधिक सेवा समिति के सचिव को रिपोर्ट भेजें। आदेश की एक प्रति लखनऊ स्थित न्यायिक प्रशिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान को भी भेजी गई, जिसे पहले ही ऐसे मुद्दों पर निचली अदालतों के न्यायाधीशों को जागरूक करने के लिए कहा गया था।
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