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सोशल मीडिया पर बोट्स और ट्रोल फार्म्स की फेक प्रोफाइल्स, असली चर्चाओं को प्रभावित कर रही हैं।

डेड इंटरनेट थ्योरी: क्या इंटरनेट पर बोट्स और प्रोपेगंडा ने असली चर्चाओं की जगह ले ली है?

डेड इंटरनेट थ्योरी: क्या हमारा इंटरनेट अब बोट्स और प्रोपेगंडा का खेल बन चुका है?

लखनऊ। इंटरनेट की दुनिया पहले जैसी नहीं रही। ‘डेड इंटरनेट थ्योरी’ के मुताबिक, अब ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर ज़्यादातर चर्चाएँ असली यूजर्स द्वारा नहीं बल्कि बोट्स, एआई जनरेटेड कंटेंट और प्रोपेगंडा नेटवर्क द्वारा संचालित की जा रही हैं।

इस थ्योरी का दावा है कि साल 2016-2017 के बाद से इंटरनेट पर असली और नकली कंटेंट के बीच की सीमाएं धुंधली हो गई हैं। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर एक-तिहाई से ज़्यादा इंटरैक्शन अब ऑटोमेटेड बोट्स या पेड वर्कर्स द्वारा किए जा रहे हैं।

विशेषज्ञों के अनुसार, इंटरनेट पर अब एक “डिजिटल युद्ध” चल रहा है। कई देश और कॉर्पोरेट संस्थाएं इन बोट्स के ज़रिए विचारधारा फैलाने, झूठी खबरों को वायरल करने और लोगों के व्यवहार को प्रभावित करने का काम कर रहे हैं।

सोशल मीडिया पर नकली यूजर्स का राज!

साइबर सिक्योरिटी रिपोर्ट्स के अनुसार, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स जैसे फेसबुक, एक्स (पूर्व में ट्विटर), इंस्टाग्राम और टेलीग्राम पर लाखों फर्जी प्रोफाइल सक्रिय हैं। ये प्रोफाइल असली लोगों जैसे ही दिखते हैं — प्रोफाइल फोटो, बायो और यहां तक कि पोस्टिंग पैटर्न भी असली लगते हैं। लेकिन इनके पीछे इंसान नहीं बल्कि कोई ऑटोमेटेड स्क्रिप्ट या ट्रोल फार्म का कर्मचारी होता है।

विशेषज्ञों का कहना है कि ये बोट्स केवल राजनीतिक प्रोपेगंडा तक ही सीमित नहीं हैं। ब्रांड प्रमोशन, फेक ट्रेंड्स, और यहां तक कि युद्ध और चुनावों की खबरों को भी ये बोट्स प्रभावित कर रहे हैं।

असली से नकली तक का सफर

एक समय था जब इंटरनेट असली अनुभवों और सच्चे इंसानी संवादों का प्लेटफॉर्म हुआ करता था। लेकिन आज के एल्गोरिदम ट्रेंड्स को इस आधार पर तय करते हैं कि कौन सा कंटेंट ज़्यादा रिएक्शन पैदा कर रहा है, न कि कौन सी खबर सच्ची या भरोसेमंद है।

रिपोर्ट्स बताती हैं कि इन बोट्स का मकसद बहस छेड़ना नहीं बल्कि उसे उलझाना है। जब असली यूजर्स किसी मुद्दे पर बहस करते हैं, बोट्स उस बहस में घुसपैठ करके चर्चा का रुख मोड़ देते हैं।

सच्चाई की खोज मुश्किल

सोशल मीडिया कंपनियों पर आरोप लगते रहे हैं कि वे इन फेक अकाउंट्स और नकली ट्रेंड्स के खिलाफ पर्याप्त कदम नहीं उठा रही हैं। दरअसल, इन प्लेटफॉर्म्स की कमाई का बड़ा हिस्सा ‘एंगेजमेंट’ यानी यूजर्स की सक्रियता से आता है, चाहे वो असली हो या नकली।

क्या है समाधान?

विशेषज्ञों की सलाह है कि सोशल मीडिया पर किसी भी पोस्ट को लाइक या शेयर करने से पहले उसकी सच्चाई जांचें। किसी पोस्ट से अगर अचानक गुस्सा या कोई तीव्र भावनात्मक प्रतिक्रिया हो रही है, तो यह संकेत हो सकता है कि वो कंटेंट किसी बोट या प्रोपेगंडा नेटवर्क द्वारा तैयार किया गया है।

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