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सबरीमाला मंदिर में बदलेगा हाजारों साल पुराना बड़ा इतिहास

sabनई दिल्ली। केरल के प्रसिद्ध सबरीमाला  मंदिर में केरल सरकार अब महिलाओं के प्रवेश को लेकर तैयार हो गई। केरल की वामपंथी सरकार ने 2007 में UDF सरकार के हलफनामे के विपरीत यह हलफनामा दायर करके कहा कि मंदिर में हर उम्र की महिलाओं को प्रवेश दिया जाना चाहिेए।

वहीं सबरीमाला मंदिर बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में केरल सरकार के इस कदम का विरोध किया। ट्रस्ट का कहना है कि सरकार अपने स्टैंड नहीं बदल सकती। इस मामले की अगली सुनवाई 20 फरवरी को होगी।

इस ऐतिहासिक मंदिर में पुरानी परंपरा के मुताबिक तरुण अवस्था में प्रवेश कर चुकी महिलाओं का मंदिर में आना वर्जित है। ये मामला पिछले 10 साल से कोर्ट में चल रहा है। जनवरी और अप्रैल में भी सुनवाई के दौरान जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस एनवी रमण की पीठ ने मंदिर में महिलाओं के रोक पर आपत्ति जताई थी।

2007 में केरल सरकार ने भी मंदिर प्रशासन के समर्थन में कहा था कि धार्मिक मान्यताओं की वजह से महिलाओं को मंदिर में प्रवेश करने की इजाजत नहीं दी जा सकती।

जनहित याचिका दायर करने वाले वकीलों के संगठन इंडियन यंग लॉयर्स असोसिएशन ने दलील दी कि सती और दहेज जैसी पुरानी परंपराओं को भी खत्म किया गया है। याचिका में हर उम्र की लड़कियों के लिए मंदिर में प्रवेश की अनुमति मांगी गई है।

सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 तक की महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी है। तिरुअनंतपुरम से लगभग दो सौ किलोमीटर दूर सहयाद्रि की पहाड़ियों पर बने इस मंदिर में हर साल लाखों श्रद्धालु आते हैं लेकिन सभी पुरुष होते हैं। महिलाओं में सिर्फ बच्चियां और बूढ़ी औरतों को वहां आने की इजाजत है। बाकी किशोरियों से लेकर प्रौढ़ाएं तक, मंदिर के भीतर नहीं जा सकतीं।

सबरीमाला अयप्पा भगवान का मंदिर है। भगवान अयप्पा को ब्रह्मचारी और तपस्या लीन माना जाता है। इसलिए मंदिर में मासिक धर्म के आयु वर्ग में आने वाली स्त्रियों का जाना प्रतिबंधित है। मंदिर ट्रस्ट का दावा है कि यहां 1500 साल से महिलाओं की प्रवेश पर बैन है।

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