राघवेंद्र मिश्र
लखनऊ। प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में साइकिल की रफ्तार बढ़ाने के लिए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अब यहां से चुनाव मैदान में उतर सकते हैं।
विधान परिषद सदस्य मुख्यमंत्री अखिलेश यादव किस सीट से चुनाव लड़ेंगे यह अभी तय नहीं है। पर यह पक्का है कि वह बुंदलेखंड के किसी जिले से वह नामांकन कर सकते हैं।
मुख्यमंत्री का चुनाव लड़ना और बुंदेलखंड को चुनना एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है। बुंदेलखंड से विधानसभा चुनाव लड़कर अखिलेश एक तीर से दो निशाने भी साध रहे हैं।
जानकारों का कहना है कि बुंदेलखंड में समाजवादी पार्टी का प्रदर्शन बहुत अच्छा नहीं है। बुंदेलखंड की 20 विधानसभा सीटों से सपा के कब्जे में मात्र छह सीटें ही हैं। वहां से चुनाव लड़कर मुख्यमंत्री पार्टी के प्रभाव को विस्तार देना चाहते हैं। मुख्यमंत्री यदि बुंदेलखंड से चुनाव लड़ते हैं तो इसका फायदा अन्य सीटों पर भी पड़ेगा। मुख्यमंत्री को अपनी विकासवादी छवि पर भरोसा है।
मुख्यमंत्री के करीबियों का कहना है कि बुंदेलखंड में जितना काम अखिलेश यादव ने किया है, उतना किसी और मुख्यमंत्री ने नहीं किया है। मुख्यमंत्री ने बुंदेलखंड में विकास की योजनाओं की झड़ी लगा दी है। बुंदेलखंड क्षेत्र में चार सौ करोड़ रुपए की पेयजल, 40 करोड़ रुपए की हैंडपम्प योजना के साथ ही उन्होंने फसल बर्बाद होने पर 1404 करोड़ रुपए के मुआवजे की घोषणा के साथ पावर प्रोजेक्ट लगाने के साथ ही दो लाख 40 हजार परिवारों को अनाज पैकेज देने की शुरूआत चुनाव में बड़ी भूमिका निभाएगा।
अनाज पैकेज में सरकार 10 किलो गेंहू, पाच किलो दाल, पांच किलो चावल, 25 किलो आलू, एक किलो देसी घी, पांच लीटर सरसों का तेल और एक किलो य के दूध का पाउडर हर महीने जनता को दे रही है। इसके अलावा मुख्यमंत्री ने गुरुवार को हमीरपुर में तीन जिलों में सोलर प्लांट लगाने की घोषणा करके बुंदेलखंडवासियों का दिल खुश करने का एक और प्रयास किया है।
यह हकीकत भी है कि मुख्यमंत्री की व्यक्तिगत छवि ऐसी है कि वह किसी भी सीट से चुनाव जीत सकते हैं। पर बुंदेलखंड को चुनने के पीछे की सोच यह है कि वह अपने दम पर सपा का नया गढ़ तैयार करना चाह रहे हैं। मुख्यमंत्री के चुनाव लड़ने की पटकथा तैयार हो गई है।पटकथा के अनुसार जिले से मुख्यमंत्री के चुनाव लड़ने के लिए प्रस्ताव आएगा और उसके बाद घोषणा की जाएगी। फिलहाल प्रस्ताव का इंतजार है।
दरअसल, अखिलेश का विधानसभा चुनाव लड़ना भविष्य की राजनीति के ओर भी संकेत दे रहा है। सपा यदि लक्ष्य 2017 नहीं प्राप्त कर सकी और उसे विपक्ष में बैठना पड़ा तो नेता प्रतिपक्ष और नेता सपा विधायक दल का पद भी अखिलेश अपने पास से नहीं जाने देना चाह रहे हैं। इसीलिए उन्होंने चुनाव मैदान में उतरने का मन बनाया है। पर चाचा के साथ अपने तल्ख रिश्तों के चलते उन्होंने अपने परिवार की स्वाभाविक प्रभाव वाली सीटों से दूरी बना ली है। आशंका जातायी जा रही है कि तथाकथित ‘यादव बेल्ट’ में भीतरघात का प्रयास हो सकता है।