नई दिल्ली। लेफ्टिनेंट जनरल बिपिन रावत की नये थल सेना प्रमुख के रूप में घोषणा के बाद विवाद शुरू हो गया है।
कांग्रेस सहित कई राजनीतिक दलों ने केंद्र सरकार पर वरिष्ठता के आधार पर सेना प्रमुख की नियुक्ति के नियम के उल्लंघन का आरोप लगाया है।
कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने कहा कि लेफ्टिनेंट जनरल रावत की क्षमता पर कोई शक नहीं है, लेकिन सरकार को बताना चाहिए कि उनकी नियुक्ति के लिए तीन वरिष्ठ अधिकारियों को क्यों नजरअंदाज किया गया।
उन्होंने कहा कि जनरल दलबीर सिंह सुहाग के बाद पूर्वी कमान के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल प्रवीण बख्शी को सेना में सबसे वरिष्ठ होने के नाते सेना प्रमुख पद का अगला दावेदार माना जा रहा था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
जनता दल यूनाइटेड (जदयू) ने सेना प्रमुख बिपिन रावत को लेकर केंद्र की मोदी सरकार पर हमला किया है। जदयू नेता केसी त्यागी ने कहा कि भाजपा भी अब कांग्रेस के नक्शेकदम पर चल रही है।
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के माजिद मेनन ने कहा कि सेना के अहम पदों पर नियुक्ति को लेकर कोई समझौता नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार ने सेना प्रमुखों की नियुक्ति में लंबे समय से चले आ रहे वरिष्ठता सिद्धांत को दरकिनार किया है।
वहीं रक्षा मंत्रालय के अनुसार लेफ्टिनेंट जनरल बिपिन रावत ने यु्द्ध क्षेत्र में सराहनीय कार्य किए हैं और उन्हें तीन दशक का सेना में कार्य करने का अनुभव है। मौजूदा चुनौतियों के हिसाब से उन्हें इस पद के लिए उपयुक्त पाया गया है।
लेफ्टिनेंट जनरल बिपिन रावत देश के अगले सेना अध्यक्ष होंगे। वर्तमान में वह थलसेना सहसेनाध्यक्ष के पद पर कार्यरत हैं। लेफ्टिनेंट जनरल रावत जनरल दलबीर सिंह का स्थान लेंगे। भारत के थल सेना अध्यक्ष जनरल दलबीर सिंह 31 दिसम्बर को सेवानिवृत्त हो रहे हैं।