लखनऊ । बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की राजधानी लखनऊ में आयोजित ’परिवर्तन रैली’ को फ्लॉप करार दिया है।
उन्होंने कहा कि भाड़े की भीड़ के साथ-साथ टिकटार्थियों द्वारा जुटाये गये जमावड़े व भाजपा द्वारा अपनी पूरी ताक़त लगाने के बावजूद भी यह रैली ’’कुर्सियों वाली रैली’’ ही साबित हुई जिसमें जनता की भागीदारी काफी कम रही।
मायावती ने कहा कि रैली की लगभग 40 हजार कुर्सियों में काफी बड़ी संख्या में सुरक्षाकर्मियों के ही लोग डटे रहे।
बसपा मुखिया ने सोमवार को भाजपा की रैली पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि वैसे तो नोटबन्दी के प्रभाव के कारण भाजपा की ’परिवर्तन यात्रायें’ पूरे प्रदेश में काफी फीकी रहीं हैं और इनमें जन भागीदारी काफी कम रही है, लेकिन नोटबन्दी का खास असर व लोगों की उस सम्बन्ध में नाराजगी आज हुई रैली में देखने को भी मिली।
भाजपा ने इसे भांपते हुये केवल लगभग 40 हजार कुर्सीयों का ही इंतजाम किया था और इन कुर्सीयों को भी काफी दूरी-दूरी पर बिछाया गया था ताकि पूरा ’’रमाबाई अम्बेडकर मैदाम’’ भरा-भरा लगे। मायावती ने कहा कि भाजपा की इस रैली में केवल भाड़े की भीड़ के साथ-साथ ज्यादातर टिकटार्थियो की ही भीड़ नजर आयी जो काफी बड़ी संख्या में कुर्सीधारी थे। इसके अलावा काफी बड़ी संख्या में सुरक्षाकर्मियों को भी तैनात किया गया था।
बसपा मुखिया ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का भाषण भी ज्यादातर मामलों में वही पुराना व घिसा-पिटा ही था। उनका भाषण जनता की उम्मीद पर खरा नहीं उतर पाया और नए साल में उनका पहला राजनीतिक सम्बोधन भी 31 दिसम्बर 2016 के देश के नाम सम्बोधन की तरह ही निराश करने वाला था।
बसपा अध्यक्ष ने कहा कि नववर्ष में भी नोटबन्दी से देशवासियों को कुछ राहत देने वाली बात उन्होंने की ही नहीं जबकि यह ज्वलन्त समस्या है। इसके विपरीत जले पर नमक छिड़कते हुये पेट्रोल, डीजल व रसोई गैस जैसे आवश्यक वस्तुओं की कीमतें बढ़ाकर नववर्ष 2017 में आमजनता की कमर तोड़ने वाला कड़वा ’तोहफा’ जरूर उनकी सरकार ने लोगों को दे दिया है, जिसकी बसपा कड़े शब्दों में निन्दा करती है।
मायावती ने कहा कि इसके साथ ही प्रधानमंत्री के पिछले दो सम्बोधनों के बाद अब जनता में यह सवाल उठने लगें हैं कि ’नोटबन्दी’ के 50 दिनों बाद प्रधानमंत्री व भाजपा केवल हवा-हवाई व खोखली बातें ही क्यों कर रहे हैं? यह लोग जनता को उस लाभ के बारे में क्यों नहीं बता रहे हैं जिसका वायदा उन्होंने नोटबन्दी के समय बार-बार किया था।
उन्होंने कहा कि इसके अलावा, भाजपा अपना हिसाब-किताब देश की जनता को क्यों नहीं दे रही है कि उसने 08 नवम्बर की नोटबन्दी से पहले अपने अकूत धन को कहां-कहां जुगाड़ की मार्फत कैसे बन्दोबस्त किया, कितनी सम्पत्तियां खरीदीं और नोटबन्दी के बाद कितना धन ठिकाने लगाया और बैंकों में कितना जमा कराया।
बसपा मुखिया ने कहा कि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह द्वारा अपने भाषण में झकझोरने के बावजूद भी रैली की भीड़ यह मानने को तैयार नहीं दिखी कि मोदी यूपी. वाले हैं। उनके बार-बार पूछने के बावजूद लोगों की प्रतिक्रिया लगभग शान्त ही रही कि मोदीजी यूपी. वाले है।
मायावती ने कहा कि मोबाइल एप ’’भारत इण्टरफेस फॉर मनी’’ के अंग्रेजी नाम से लांच किया गया और उसको ’’भीम’’ का उपनाम से प्रचारित कर दलित समाज के लोगों को इसके नाम पर बरग़लाने के प्रयास किया गया। उन्होंने इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री की टिप्पणी पर कहा कि अगर प्रधानमंत्री के नीयत साफ होती तो इसका नाम ही फिर बाबा साहेब डा. भीमराव अम्बेडकर के नाम पर सीधा कर दिया गया होता।
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