कभी-कभी किसी परिवार का करीबी या रिश्तेदार उसे ऐसी स्थिति में लाकर खड़ा कर देता है कि न उगलते बनता है और न थूकते। अपनी परेशानी किसी दूसरे से साझा करने में भी तमाम तरह की हिचक बनी रहती है। खासकर, बाल यौन शोषण जैसे मामलों में खुद को संभालना और आरोपित को सबक सिखाना परिवार के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण होता है। ऐसे ही एक सामान्य परिवार ने हिम्मत दिखाते हुए अपने करीबी रिश्तेदार को न केवल जेल की सीखचों तक पहुंचाया, बल्कि सजा दिलाने तक लड़ाई लड़ी।
घटना दस साल पुरानी है। हालांकि यह परिवार अब इसे याद ही नहीं करना चाहता है। काफी कुरेदने पर उन्होंने अपना दर्द साझा किया। करीबी रिश्तेदार की करतूत का जिक्र आया तो इस बात पर संतोष जाहिर किया है कि उसे उन्होंने उसके किए की सजा दिलाई है। पटेलनगर इलाके में वर्ष 2008 में एक परिवार की 13 साल की बच्ची के साथ उसके रिश्ते के चाचा ने दुष्कर्म किया था। पिता का साया सिर से उठने के बाद तब बच्ची की परवरिश उसकी मां कर रही थी। जो लोगों के घर में कामकाज कर गुजर-बसर करती थी। उस घटना को याद कर एक बारगी मां की आंखें नम हो गईं, लेकिन अगले ही पल खुद को संभालते हुए हिम्मत वाली इस साधारण महिला ने अपनी पीड़ा बयां की।
बकौल पीड़िता की मां, उस दिन वह लोगों के घरों में साफ-सफाई कर देर शाम घर पहुंची तो बेटी कमरे के एक कोने में गुमशुम बैठी थी। खाना बनाने की जल्दबादी में उसने उसकी तरफ ज्यादा ध्यान नहीं दिया। लेकिन बार-बार बुलाने पर भी खाने के लिए नहीं आने पर वजह जानी तो वह फफक-फफक कर रोने लगी। उसके बाद उसने जो बताया उसे सुनकर मेरे होश उड़ गए। बताया कि दिन में गांव से रिश्ते के चाचा घर आए थे और उसने उसके साथ दुष्कर्म किया। वह बेटी को जाते हुए धमकी भी दे गया कि किसी को कुछ बताया तो उसकी मां को जान से मार देगा।
वह बताती हैं कि पहले तो मेरी समझ में कुछ नहीं आया कि क्या करूं, पति थे नहीं, परेशानी बताती तो भी किसे। वो रात तो हम दोनों ने रो-रोकर किसी तरह गुजार दी। ऐसा लगा, अब जिंदगी में कुछ रहा ही नहीं। इसी उधेड़बुन में रात तो कट गई, लेकिन सुबह आंखों के आगे फिर से वही अंधेरा छाने लगा कि, अब क्या होगा उनका। किसी तरह खुद और बेटी को समझाया और साहस जुटाते उन परिवारों में से एक के घर पहुंच गई, जिनके यहां काम करती थी। वो साहब बैंक में अधिकारी थे, उसके पहुंचने तक ड्यूटी जा चुके थे। उनकी पत्नी घर पर थी, वह काफी सेवाभाव वाली थी, सो मैंने मैडम जी को पूरा वाकया बताया।
मैडम के बताने पर उनके पति ने उन्हें पुलिस चौकी जाने को कहा, इस बीच उन्होंने खुद भी चौकी में फोन कर दिया था। यही नहीं, मैडम खुद अपनी गाड़ी में मुझे बैठाकर हमारे कमरे पर आई और वहां से बेटी को साथ लेकर पुलिस चौकी आईं। पढ़ी-लिखी न होने की वजह से उसकी तरफ से मैडम ने ही शिकायत लिखी। चूंकि मैंने किसी भी रिश्तेदार को इस बारे में कुछ नहीं बताया था, इसलिए उस वक्त मेरे मन में कई तरह के ख्याल आए कि अपने ही परिवार वाले के खिलाफ कैसे रिपोर्ट लिखाऊं, लोग क्या कहेंगे, हमें लोग जीने नहीं देंगे, ताने मारकर जीना मुश्किल कर देंगे आदि-आदि।
लेकिन, जब मैंने अपनी बच्ची की तरफ देखा और उसकी पीड़ा समझी तो तय कर लिया कि बुरा काम करने वाले को सजा दिलाकर रहूंगी। पुलिस ने भी बगैर देरी के बेटी का मेडिकल कराया और रिपोर्ट दर्ज अगले दिन आरोपित को गिरफ्तार कर ले आई। उसके बाद मैं हर तारीख पर अदालत गई और आरोपित को सजा दिलाकर ही दम लिया। करीब ढाई साल बाद आरोपित रिश्तेदार को अदालत ने सात साल की सजा सुना दी थी।
शिकायत लिखवाने चौकी तक गई मैडम ने ने हिम्मत ही नहीं दी, बल्कि कदम-कदम पर सहारा भी दिया। शुरुआती कुछ साल तो इस बात को सोचकर परेशान हो जाया करती थे, लेकिन बेटी को मैंने हमेशा से पीछे की बजाय आगे की तरफ देखने को हौसला दिया। समय बीतने के साथ-साथ हमारा जीवन भी पटरी पर आता चला गया। अब मेरी बेटी भी विदा होकर ससुराल चली गई है।