तन्वी सेठ उर्फ सादिया का पासपोर्ट झूठ के उस पन्ने पर बना दिया गया, जिसके पकड़े जाने पर आज भी जुर्माना व उसके रद्द होने का प्रावधान है। क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यालय ने नए नियम, ‘आवेदक देश में कहीं से भी आवेदन कर सकता है’ की आड़ में तन्वी के पासपोर्ट को हरी झंडी तो दे दी, लेकिन विभाग पासपोर्ट एक्ट के उन नियमों में बदलाव नहीं कर पाया जिसके तहत कार्रवाई की जानी चाहिए थी। इस नियम के अनुसार, आज भी आवेदन करते समय मांगी जाने वाली सभी जानकारियों को ठीक से भरना जरूरी होता है।
दरअसल, पासपोर्ट आवेदकों को उसके हर कॉलम की जानकारी सही भरनी होती है। फार्म पर ऊपर साफ लिखा होता है कि अधूरी या गलत जानकारी भरने पर पासपोर्ट एक्ट 1967 के तहत आवेदन निरस्त हो सकता है। तन्वी ने आवेदन में छठे बिंदु में गलत जानकारी दी।
इसमें पूछा गया था कि क्या आप अपने किसी उपनाम से भी जानी जातीं हैं। तन्वी को उनके ससुराल पक्ष के लोग सादिया के नाम से ही जानते हैं। यह निकाहनामा में भी दर्ज है। इसी तरह बिंदु आठ में पूछा गया था कि आपने कभी अपना नाम बदला है। यदि हां तो उसके विकल्प में सही का निशान लगाएं। यहां भी तन्वी ने अपनी जानकारी छिपाए रखी।
इस सजा से बचा दिया सादिया को-
तन्वी सेठ उर्फ सादिया के पासपोर्ट आवेदन की पुलिस वेरीफिकेशन रिपोर्ट में प्रतिकूल प्रविष्टि दर्ज की गई थी। आवेदन के समय तन्वी और उनके पति मोहम्मद अनस सिद्दीकी ने जान बूझकर सूचनाएं छिपाई थीं। यह पासपोर्ट एक्ट 1967 की धारा 12 की उपधारा 1 (बी) के प्रावधान का उल्लंघन है। साथ ही झूठी जानकारी देकर पासपोर्ट प्राप्त करना पासपोर्ट एक्ट की धारा 10 की उपधारा 3 (बी) के अंतर्गत आता है। इसी धारा के तहत ही पासपोर्ट रद करने की प्रक्रिया होती है, जबकि पासपोर्ट एक्ट की धारा 1(ई) के अंतर्गत कारावास या आर्थिक जुर्माना लगाने का प्रावधान है।
अब तक नहीं बदला यह एक्ट-
क्षेत्रीय पासपोर्ट अधिकारी पीयूष वर्मा ने एक जून, 2018 से वेरीफिकेशन के नए प्रारूप को ढाल बनाया, जिसमें केवल नागरिकता और अपराध का पुलिस सत्यापन ही कराया जाता है, जबकि 26 जून से लागू नए नियम के अनुसार आवेदक देश में कहीं से भी अपना आवेदन कर सकता है। नया प्रारूप केवल आवेदन में दी गई जानकारी के सत्यापन से संबंधित है। गलत सूचना देने पर कार्रवाई करना पासपोर्ट विभाग की जिम्मेदारी है।
तन्वी ने 20 जून को पासपोर्ट आवेदन के समय अपना नाम सादिया होने के साथ ही नोएडा में एक साल से अधिक समय से रहने और वहां की आइटी कंपनी में नौकरी करने की बात छिपाई थी। पासपोर्ट एक्ट 1967 के तहत गलत जानकारी छिपाना दंडनीय अपराध की श्रेणी में आता है। ऐसे में पासपोर्ट विभाग ने आंखे मूंदकर पुलिस वेरीफिकेशन रिपोर्ट को दरकिनार करते हुए झूठ की बुनियाद पर अपनी क्लीयरेंस दे दी।