भारत-पाकिस्तान सीजफायर विवाद पर अब राजनीतिक तापमान भी बढ़ गया है। हाल ही में भारत और पाकिस्तान के बीच अचानक हुए सीजफायर के ऐलान के बाद विपक्षी दलों ने केंद्र सरकार पर सवालों की बौछार कर दी है। कांग्रेस पार्टी और एआईएमआईएम के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने सीजफायर को लेकर सरकार से जवाब मांगा है और संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग की है।
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कांग्रेस ने कहा है कि यह बेहद चिंताजनक है कि भारत-पाकिस्तान सीजफायर विवाद की जानकारी देश को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बयान से मिली। कांग्रेस प्रवक्ता ने सवाल उठाते हुए कहा, “तीसरा देश हमारे आंतरिक मामलों में कैसे कूद सकता है? क्या सरकार ने अमेरिका को मध्यस्थता का अधिकार दिया है?” पार्टी का कहना है कि अगर भारत ने पाकिस्तान के साथ संघर्ष विराम किया है, तो इसके पीछे की रणनीति और प्रभाव के बारे में संसद को सूचित किया जाना चाहिए।

असदुद्दीन ओवैसी ने भी इसी मुद्दे पर सरकार को आड़े हाथों लेते हुए कहा, “यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत जैसे संप्रभु देश को अपने नागरिकों को यह जानकारी अमेरिका के राष्ट्रपति के जरिए देनी पड़ रही है। हमें यह जानने का अधिकार है कि भारत ने इस सीजफायर से क्या पाया और क्या खोया।”
विपक्ष का यह भी आरोप है कि सरकार ने इस गंभीर मुद्दे पर पारदर्शिता नहीं बरती और न ही देश को पहले से अवगत कराया। कांग्रेस नेताओं ने कहा कि संसद लोकतंत्र का सर्वोच्च मंच है और सरकार को वहां जाकर स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए। उनका मानना है कि विदेश नीति और सुरक्षा जैसे संवेदनशील मुद्दों पर देश को अंधेरे में रखना, लोकतंत्र की भावना के खिलाफ है।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या सरकार इस दबाव के बाद संसद का विशेष सत्र बुलाएगी या विपक्ष के सवालों का कोई और जवाब देगी। सीजफायर से पहले और बाद की घटनाएं इस ओर इशारा करती हैं कि भारत-पाकिस्तान संबंधों के नए अध्याय की शुरुआत हो सकती है, लेकिन इसमें अमेरिकी भूमिका पर उठे सवालों ने विवाद को जन्म दे दिया है।
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