“चीन के हुनान प्रांत में मिली 1,000 मीट्रिक टन सोने की खदान से वैश्विक अर्थव्यवस्था में हलचल। जानें, भारत-अमेरिका पर इसका प्रभाव और चीन की अर्थव्यवस्था में क्या बदलाव आएंगे।”
मनोज शुक्ल
चीन, जो दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, अब एक और बड़ी उपलब्धि हासिल करने के करीब है। मध्य चीन के हुनान प्रांत में दुनिया की सबसे बड़ी सोने की खदान खोजी गई है। इस खदान से 1,000 मीट्रिक टन से अधिक सोना मिलने का अनुमान है, जिसकी मौजूदा बाजार कीमत लगभग 83 बिलियन डॉलर (लगभग 7 लाख करोड़ रुपये) आंकी गई है। यह भारत के कुल स्वर्ण भंडार से भी अधिक है। इस खोज के कई आर्थिक, राजनीतिक, और भू-राजनीतिक प्रभाव हैं, जो न केवल चीन बल्कि दुनिया भर के देशों के लिए मायने रखते हैं।
कैसे मिली यह खदान?
चीन के हुनान प्रांत के जियोलॉजिकल ब्यूरो ने पिंगजियांग काउंटी में 40 सोने की नसों (वीन्स) का पता लगाया। यह खदान जमीन से 2 किलोमीटर नीचे स्थित है, और वैज्ञानिकों का कहना है कि इस क्षेत्र में 3,000 मीटर तक खुदाई करने से 1,000 टन से अधिक उच्च गुणवत्ता वाला सोना निकाला जा सकता है।
इस खोज में आधुनिक 3D जियोलॉजिकल मॉडलिंग टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया गया। इस तकनीक के तहत उपग्रह इमेजरी का उपयोग करके जमीन के नीचे खनिजों की सटीक स्थिति का आकलन किया जाता है। पारंपरिक सर्वेक्षणों की तुलना में यह प्रक्रिया अधिक सटीक और समय-कुशल है। वैज्ञानिकों ने चट्टानों के सैंपल का गहन विश्लेषण किया, जिससे सोने की उपस्थिति का पता चला।
तकनीकी प्रक्रिया में शामिल मुख्य पहलू:
- 3D मॉडलिंग और सैटेलाइट इमेजरी का उपयोग।
- अत्याधुनिक ड्रिलिंग तकनीक, जिससे चट्टानों के कोर में मौजूद खनिजों का विश्लेषण किया गया।
- 2,000 मीटर गहराई से प्रति टन चट्टान में 138 ग्राम सोना मिलने का अनुमान
चीन की अर्थव्यवस्था पर संभावित प्रभाव
चीन, जो पहले ही दुनिया का सबसे बड़ा स्वर्ण उत्पादक है, अब इस खोज के बाद अपनी स्थिति और मजबूत कर सकता है।
- सोने के उत्पादन में बढ़ोतरी:
चीन 2023 में वैश्विक स्वर्ण उत्पादन का 10% हिस्सा रखता था। इस खोज से उसका योगदान और बढ़ेगा। वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल के अनुसार, चीन के पास 2,264 मीट्रिक टन का स्वर्ण भंडार है। - आर्थिक स्थिरता और विकास:
कोविड-19 के बाद चीन की अर्थव्यवस्था अभी भी संघर्षरत है। 2024 में चीन का विकास दर 4.8% रही, जो 5% के लक्ष्य से कम है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस नई खोज से चीन की अर्थव्यवस्था को गति मिल सकती है। - मुद्रा की मजबूती:
सोने का भंडार किसी भी देश की मुद्रा की स्थिरता को मजबूत करता है। चीन ने हाल के वर्षों में अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम करने के लिए कई कदम उठाए हैं, और यह खोज इसमें सहायक हो सकती है।
क्या चीन अमेरिका को पछाड़कर सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है?
चीन लंबे समय से अमेरिकी डॉलर के वर्चस्व को चुनौती देने की कोशिश कर रहा है। CIPS (क्रॉस-बॉर्डर इंटरबैंक पेमेंट सिस्टम) जैसी पहल के जरिए चीन अंतरराष्ट्रीय लेनदेन में अपनी मुद्रा युआन का उपयोग बढ़ा रहा है।
- मुद्रा स्वैप समझौते:
चीन ने 40 से अधिक देशों के साथ मुद्रा स्वैप समझौते किए हैं। इन समझौतों से व्यापार के लिए अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता कम हो जाती है। - डी-डॉलराइजेशन:
सोने की नई खोज युआन की वैल्यू बढ़ाने में मदद करेगी। इसके अलावा, सऊदी अरब जैसे देशों के साथ युआन में व्यापारिक समझौते चीन के इस एजेंडे को आगे बढ़ा रहे हैं।
भारत और अमेरिका पर असर
अमेरिका:
अमेरिकी डॉलर वैश्विक व्यापार में अभी भी सबसे मजबूत मुद्रा है। लेकिन चीन के लगातार प्रयास और सोने की नई खोज अमेरिकी बाजारों के लिए चुनौती खड़ी कर सकते हैं।
जेपी मॉर्गन के रणनीतिक विश्लेषक एलेक्जेंडर वाइस के अनुसार, अगर डी-डॉलराइजेशन तेज होता है, तो अमेरिकी बाजारों में विदेशी निवेश कम हो सकता है।
भारत:
चीन की यह उपलब्धि भारत के लिए कई तरह से चुनौतियां पैदा कर सकती है:
पड़ोसी देशों पर प्रभाव:
- चीन अपने सोने के भंडार का उपयोग पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल और बांग्लादेश जैसे देशों को फंडिंग देने में कर सकता है।
- इन देशों की चीन पर निर्भरता बढ़ सकती है, जिससे भारत की सॉफ्ट पावर कमजोर हो सकती है।
आर्थिक प्रतिस्पर्धा:
चीन एशियाई देशों को सस्ते ब्याज दरों पर कर्ज दे सकता है। यह भारतीय कंपनियों और सरकार के लिए प्रतिस्पर्धा बढ़ा सकता है।
सैन्य चुनौतियां:
चीन अपने पड़ोसी देशों के साथ सैन्य सहयोग बढ़ा सकता है। ‘चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा’ और ‘वन बेल्ट, वन रोड’ परियोजनाओं का विस्तार इसका उदाहरण हैं।
भारत की स्थिति और सोने का भंडार
आरबीआई की 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के पास 854 मीट्रिक टन सोना है। इसमें से 510 टन देश के भीतर और बाकी बैंक ऑफ इंग्लैंड और स्विट्जरलैंड के बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट्स में जमा है।
क्या भारत जमीन के नीचे दबा सोना निकाल सकता है?
भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) के अनुसार, भारत के पास लगभग 2,000 मीट्रिक टन सोने का भंडार हो सकता है। लेकिन इसे निकालने में कई चुनौतियां हैं:
- तकनीकी और आर्थिक बाधाएं:
खनन के लिए उन्नत तकनीक और भारी निवेश की जरूरत है, जो भारत के पास सीमित है। - पर्यावरणीय और सामाजिक मुद्दे:
खनन से पर्यावरणीय क्षति और स्थानीय लोगों का विरोध भी एक बड़ी बाधा है। - कानूनी और प्रशासनिक चुनौतियां:
खनन के लिए जटिल प्रक्रियाएं और अनुमतियां समय लेने वाली होती हैं।
दुनिया के अन्य देशों के पास कितना सोना है?
2024 की वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल की रिपोर्ट के अनुसार:
अमेरिका: 8,133 टन (पहला स्थान)
जर्मनी: 3,352 टन
चीन: 2,264 टन (छठा स्थान)
भारत: 854 टन (नौवां स्थान)
चीन में दुनिया की सबसे बड़ी सोने की खदान मिलने से वैश्विक राजनीति और अर्थव्यवस्था पर दूरगामी प्रभाव पड़ेंगे। यह न केवल चीन की अर्थव्यवस्था को मजबूत करेगा बल्कि अमेरिका और भारत जैसे देशों के लिए रणनीतिक और आर्थिक चुनौतियां भी खड़ी करेगा।
भारत को चाहिए कि वह अपनी जमीन के भीतर छिपे खनिज संसाधनों की खोज और उनके इस्तेमाल के लिए निवेश और तकनीक पर ध्यान केंद्रित करे। इसके अलावा, क्षेत्रीय कूटनीति को मजबूत करके चीन के बढ़ते प्रभाव का सामना करना होगा।
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