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बीएसएफ जवान की रिहाई के पीछे क्या है 504 घंटे की कहानी?

बीएसएफ जवान की रिहाई के लिए भारत ने 504 घंटे तक हर स्तर पर कोशिशें कीं और आखिरकार बुधवार को सफलता मिली। 23 अप्रैल को गलती से पाकिस्तान की सीमा में प्रवेश कर गए बीएसएफ कॉन्स्टेबल पूर्णम कुमार शॉ को पाक रेंजर्स ने 8 मई की सुबह 10:30 बजे अटारी-वाघा बॉर्डर पर भारत को सौंप दिया।

बीएसएफ के मुताबिक, यह प्रक्रिया शांतिपूर्ण तरीके से और स्थापित प्रोटोकॉल के तहत हुई। जवान पंजाब के फिरोजपुर सेक्टर में बॉर्डर गेट नंबर 208/1 पर तैनात थे और भारतीय किसानों की सुरक्षा के मद्देनज़र फसल कटाई के दौरान गश्त पर थे। गर्मी से राहत के लिए जब वह एक पेड़ की छांव में गए, तो गलती से पाक सीमा में चले गए। वहां पाकिस्तानी रेंजर्स ने उन्हें हिरासत में ले लिया और उनकी सर्विस राइफल भी जब्त कर ली।

जवान की सकुशल रिहाई के लिए बीएसएफ ने कोई कसर नहीं छोड़ी। इस दौरान दोनों देशों के बीच छह से अधिक फ्लैग मीटिंग हुईं। अंतरराष्ट्रीय सीमा पर बीएसएफ जवानों ने 84 बार सीटी बजाकर पाक रेंजर्स को बातचीत का संकेत भेजा। झंडा दिखाकर भी संपर्क की कोशिशें की गईं, लेकिन कई बार पाकिस्तानी पक्ष ने प्रतिक्रिया नहीं दी।

सूत्रों के अनुसार, बीएसएफ और पाक रेंजर्स के बीच सीओ, डीआईजी और आईजी स्तर तक वार्ताएं हुईं। जब बातचीत के सभी प्रयास विफल होने लगे, तो डिप्लोमेटिक चैनल को सक्रिय किया गया और डीजीएमओ स्तर की मीटिंग में भी यह मुद्दा उठाया गया। अंततः पाकिस्तानी नेतृत्व की अनुमति मिलने के बाद जवान को भारत को सौंपा गया।

बीएसएफ के पूर्व आईजी बीएन शर्मा ने बताया कि आमतौर पर ऐसे मामले कमांडेंट स्तर पर सुलझ जाते हैं, लेकिन इस बार प्रक्रिया लंबी खिंच गई। उन्होंने कहा, “यदि कोई अपराध की मंशा न हो, तो जवान को जल्दी छोड़ दिया जाता है। लेकिन इस बार पाकिस्तानी रेंजर्स बातचीत से बचते रहे।”

504 घंटे की इस कठिन प्रक्रिया के बाद, जवान की सुरक्षित वापसी ने सुरक्षा बलों और उनके परिवारों को राहत दी है। यह घटना दोनों देशों के बीच जमीनी स्तर की बातचीत और कूटनीति की अहमियत को भी रेखांकित करती है।

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