नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति वी. रामासुब्रमण्यन को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) का नया अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। 18 दिसंबर को चयन समिति की बैठक के बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने यह नियुक्ति की।
इसके साथ ही प्रियांक कानूनगो और न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) बिद्युत रंजन सारंगी को आयोग का सदस्य बनाया गया। हालांकि, इस चयन प्रक्रिया को लेकर कांग्रेस नेताओं राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे ने गंभीर आपत्तियां जताई हैं।
विपक्ष ने चयन प्रक्रिया पर उठाए सवाल
चयन समिति में लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी और राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे ने चयन प्रक्रिया को “मौलिक रूप से गलत” और “पूर्व-निर्धारित” बताया। उन्होंने आरोप लगाया कि समिति ने परामर्श और आम सहमति को पूरी तरह नजरअंदाज किया और केवल संख्यात्मक बहुमत के आधार पर निर्णय लिया।
राहुल गांधी और खरगे ने असहमति नोट में लिखा, “आयोग की संरचना समावेशिता और विविधता पर निर्भर करती है। समिति का काम यह सुनिश्चित करना है कि आयोग विभिन्न समुदायों और संवेदनशील समूहों के प्रति संवेदनशील बना रहे।”
विपक्ष के प्रस्तावित नाम
राहुल गांधी और खरगे ने अध्यक्ष पद के लिए न्यायमूर्ति रोहिंटन फली नरीमन और न्यायमूर्ति कुट्टीयल मैथ्यू जोसेफ के नाम प्रस्तावित किए। उन्होंने कहा कि न्यायमूर्ति नरीमन और जोसेफ के नाम आयोग की समावेशी दृष्टिकोण को मजबूती देंगे।
इसके अलावा, सदस्यों के पद के लिए जस्टिस एस. मुरलीधर और जस्टिस अकील अब्दुल हमीद कुरैशी के नामों की सिफारिश की गई थी।
“प्रक्रिया की निष्पक्षता पर सवाल”
खरगे ने कहा, “चयन समिति के बहुमत को बड़ा मानते हुए विविधता और समावेशिता जैसे सिद्धांतों की अनदेखी करना बेहद खेदजनक है। यह प्रक्रिया आयोग की निष्पक्षता पर गंभीर सवाल खड़े करती है।”
एनएचआरसी अध्यक्ष की नियुक्ति प्रक्रिया
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष की नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं, जो प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली चयन समिति की सिफारिश पर आधारित होती है। इस समिति में लोकसभा अध्यक्ष, गृह मंत्री, विपक्ष के नेता और राज्यसभा के उपसभापति सदस्य होते हैं।
मानवाधिकार आयोग की भूमिका और विवाद की पृष्ठभूमि
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का मुख्य उद्देश्य समाज के कमजोर और हाशिए पर पड़े वर्गों के मानवाधिकारों की रक्षा करना है। आयोग के पूर्व अध्यक्ष जस्टिस अरुण कुमार मिश्रा का कार्यकाल एक जून को समाप्त हो गया था, जिसके बाद से यह पद खाली था। विपक्ष ने चयन प्रक्रिया में “विचार-विमर्श की कमी” और “पूर्व-निर्धारित एजेंडा” की आलोचना करते हुए इसे आयोग की निष्पक्षता के लिए हानिकारक बताया है।
समावेशिता बनाम संख्यात्मक बहुमत
इस नियुक्ति ने यह बहस छेड़ दी है कि क्या एनएचआरसी जैसी संस्था की नियुक्तियों में समावेशिता और विविधता पर ध्यान देना चाहिए या केवल बहुमत के आधार पर निर्णय लेना पर्याप्त है।