लखनऊ। बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर केन्द्रीय विश्वविद्यालय में जनसंचार एवं पत्रकारिता विभाग, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोषल साइंस व टीवीई के संयुक्त तत्वाधान में गुरुवार को डाक्यूमेंट्री पर आधारित लघु फिल्मों का प्रदर्शन का किया गया।
कार्यक्रम में चार लघु फिल्में प्रदर्शित की गई जिसमें डी डेक्टिव दि चेंज, सुकृति दि सरवावर, ए न्यूहोप फार हेप्सी और लाइक एवरीवन एल्स का प्रदर्शन किया गया। ये लघु फिल्में हैपिटाइटस बीमारी के निदान और जागरूकता पर आधारित थी।
कार्यक्रम की खास बात यह रही कि पत्रकारिता विभाग की शोधार्थी नीलू शर्मा ने अपनी टीम के साथ ‘सुकृति दि सरवावर’ का निर्देशन किया और शालिनी श्रीवास्तव ने अपनी टीम के साथ ‘ए न्यूहोप फार हेप्सी’ का निर्देशन किया।
इन दोनों निर्देशकों एव उनकी टीम को टीवीई की तरफ से एक-एक लाख रुपए की आर्थिक सहायता भी प्रदान की गई। इस अवसर पर बीबीएयू के कुलपति प्रो. आरसी सोबती कहा कि कोई भीछ ात्र व्यक्तिगत या फिर समूह में अपने इन्नोवेटिव आइडिया को लेकर आए तो वह हर संभव उन्हें आर्थिक सहायता देंगे।
मीडिया सेंटर के प्रभारी प्रो. गोविंदजी पांडे ने अपने संबोधन में बताया कि पहली बार ऐसा हुआ है कि विश्वविद्यालय के छात्राओं को लघु फिल्म बनाने के लिए करीब एक-एक लाख रुपए की धनराशि प्रदान की गई है।
प्रो. पांडे ने आगे कहा कि इससे छात्र-छात्राएं फिल्म बनाने के लिए और प्रेरित होंगे। कार्यक्रम के अंत में खुला परिचर्चा का भी आयोजन किया गया जिसमें एसजीपीजीआई के डॉक्टर प्रो. राकेश अग्रवाल ने बताया कि ज्ञान की सभी विधाओं के एक साथ मिलकर काम करने से लोक हित को फायदा होता है।
एसजीपीजीआई के डॉक्टर अमित गोयल ने बताया कि रोकथाम एवं जागरूकता इलाज से सस्ता होता है जोकि सबसे जरूरी है। इस संदर्भ में लघु फिल्मों का योगदान सराहनीय है।
श्रोताओं की तरफ से अपना अनुभव साझा करते हुए शोधार्थी आनंदबाबू ने कहा कि इस कार्यशाला से वह इतना प्रभावित हुए है कि कि अपने शोध की समस्या ही हैप्पिटाइटस जगरूकता को चुना है।
शोधार्थी कृतिका अग्रवाल ने सरकार द्वारा एचआईवी पर अधिक खर्च और हैप्पिटाइटस पर कम खर्च पर सवाल किया तो प्रो. अग्रवाल ने इन दोनों बीमारियों के बेमेल खर्च के चिंता जाहिर करते हुए फैंसी और नान-फैंसी बीमारियों के बारे में जानकारी दी। इसकार्यक्रम का संचालन लेखा चटर्जी ने किया।