राजगढ़ मिर्जापुर: दीपावली पर घरों को रोशन करने के लिए जलाए जाने वाले मिट्टी के दीयों के स्थान पर इस बार गोबर से बने हर्बल दिए घर आंगन को रोशन करेंगे। धार्मिक रूप से पवित्र माने जाने वाले गाय के गोबर से बने हर्बल दीपक अब बिकने लगे हैं इससे कुंभारों को अच्छी आमदनी भी होने लगी है गोबर से बनाए गए दीपक से निकलने वाली रोशनी उनके जीवन में समृद्धि का उजाला लाएगी।
राजगढ़ ब्लॉक के भावा गोरथरा पतार नुनौटी भवानीपुर पतेरी आदि गांव में दर्जनों कुंभार हैं जो मिट्टी के दीपक के साथ हर्बल दीपक भी बनाते हैं। हर्बल दीपक बनाने के लिए काली दोमट मिट्टी और गोबर का प्रयोग करते हैं जिसमें 60% मिट्टी और 40% गोबर होता है। भावा गांव में कुल 12 परिवार हैं जिसमें से तीन परिवार की महिलाएं एवं पुरुष दोनों दीपक बनाते हैं। भावा गांव में सन 1962 में चकबंदी हुई थी उस समय प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने कुंभकारों को बर्तन बनाने के लिए मिट्टी निकालने के लिए जगह छोड़ी थी उसी में से मिट्टी लाकर कुंभकार मिट्टी के बर्तन एवं दीपक बनाते हैं।
हर्बल दीपक बनाने के लिए एक कुंभकार देसी गाय एवं देसी बैलों के गोबर का प्रयोग करते हैं जो उन्हें गांव में पाल गए गायों से प्राप्त हो जाता है। भावा गांव के कुंभकार रामपति प्रजापति शिवकुमार प्रजापति हुनर प्रजापति नंदलाल प्रजापति भोला प्रजापति सप्तमी प्रजापति एवं महिला कुंभकार वंदना प्रजापति ने बताया कि हर्बल दीपक बनाने में उन्हें काफी मेहनत करनी पड़ती है, इन दीपों को छाया में सुखना पड़ता हैं एक दिन में एक महिला कुंभकार मिट्टी बनाने से लेकर दीपक गढ़ने तक इलेक्ट्रॉनिक चाक पर लगभग 300 से 500 दीपक बना लेती है उसने बताया कि इसके लिए उन्होंने चुनार में लगे कैंप में ट्रेनिंग लिया था एक दीपक को बनाने में लगभग 50 पैसे का खर्च आता है उसने बताया कि इको फ्रेंडली दीपक जलाने से प्रदूषण नहीं फैलता और दीपक जलाने के बाद यह दीपक खाद में परिवर्तित हो जाता है।
आईटीआई पास युवक एवं इंटर की छात्रा बना रही है हर्बल दीपक
भावा गांव में अपने पेसे को आधुनिक रूप में बनाने के लिए आईटीआई पास छात्र महेश कमलेश और इंटर की छात्रा बंदना प्रजापति ने बताया कि आज के परिवेश में नौकरी मिलना बड़ा कठिन कार्य हो गया है इसलिए हम भाई-बहन अपने ही कार्य को आधुनिक बनाने के लिए मेहनत कर रहे हैं कमलेश और महेश ने बताया कि हम लोगों का विचार है कि अपने ही धंधे को आगे बढ़ाएं और स्वयं आत्मनिर्भर बने।
इन भाई बहनों का कहना है कि हम लोगों का विचार है कि मिट्टी के कुकर एवं अन्य घरेलू सामान बनाकर उन्हें बाजार में बेचना और अच्छी आमदनी करना हमारा उद्देश्य है इससे हमारे दोनों उद्देश्यों की पूर्ति हो जाएगी और हम लोगों का पढ़ना लिखना सार्थक हो जाएगा।
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