लखनऊ । राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष डा. मसूद अहमद ने केन्द्र के नोटो को बंद करने के फैसले पर कहा कि स्वयं को कई वर्षो तक सुखियों में बनाये रखने की चाल चलना भाजपाइयों एवं संघ कार्यकर्ताओं की आदत है।
इस सन्दर्भ में प्रमाण स्वरूप 6 दिसम्बर 92 की अयोध्या की घटना और गुजरात दंगों को देखा जा सकता है जिनके कारण लगभग 15 वर्ष तक उत्तर प्रदेश और गुजरात का सामाजिक वातावरण प्रदूषित रहा।
डा.अहमद ने कहा कि अब इस 8 नवम्बर को प्रधानमंत्री द्वारा 500 और 1000 के नोटो को बन्द करके अपने तानाशाही आदेश द्वारा सम्पूर्ण देश के अमीर गरीब, किसान मजदूर, छात्र, युवा एवं व्यापाारी सभी की नींद हराम कर दी है।
देश के कोने कोने में लाखों लोग भुखमरी के चपेट में आये। अधिकारिक आंकड़ों के अनुसार 165 लोंगो की मौते चिकित्सा सुविधा न मिल पाने के कारण हो गई।
लोग सारा काम छोड़कर बैंको की लाइनों में घंटों तक खड़े रहते है। कुछ घंटे बाद पता चलता है कि बदलने वाले नोट समाप्त हो गये है। यह सब देष की बागडोर संभालने वाले की घोर संवेदनहीनता की परिचायक है।
रालोद अध्यक्ष ने कहा कि भारत कृषि प्रधान देष है और अब भी लगभग 65 प्रतिषत आबादी गांवों में रहती है जहां एटीएम जैसी भी व्यवस्थाएं नहीं है।
किसान को रबी की फसल का बीज खरीदना है और स्वयं द्वारा बैंको में अथवा घर में रखे हुये रूपयों से खरीदारी करना सम्भव नहीं है। क्या रबी की फसल का मौसम प्रधानमंत्री के आदेष से रूका रहेगा?
देष की जनता ने ऐसे दिनों की उम्मीद देष के 56 इंच की छाती वाले प्रधानमंत्री से नहीं की थी आज की स्थिति पर देष के गरीबों, मजदूरों एवं किसानों के हितैषी रहे चौधरी चरण सिंह सरदार पटेल, डा.राम मनोहर लोहिया जैसे नेताओं की आत्माएं रो रही होंगी।