लखनऊ। समाजवादी पार्टी में टिकट बंटवारे पर रामगोपाल के बोल से नया विवाद खड़ा हो गया है। इससे विधानसभा चुनाव के टिकटार्थी जहां पशोपेश में हैं कि किस दरवाजे पर दस्तक दें तो वहीं पार्टी में नए सिरे से संतुलन बनाने की कवायद शुरू हो गई है।
गौरतलब है कि सपा के राष्ट्रीय महासचिव रामगोपाल यादव ने तीन दिन पूर्व इटावा में कहा कि वह सपा संसदीय बोर्ड के सचिव हैं। इसलिए टिकट वितरण में उनका निर्णय ही अंतिम होगा।
रामगोपाल ने यह बयान यह जानने के बाद दिया कि मुलायम सिंह बार-बार कह चुके हैं कि टिकट बंटवारे का काम अखिलेश और शिवपाल की सिफारिश पर संसदीय बोर्ड करेगा। यानी टिकट वितरण में अखिलेश और शिवपाल को अहमियत दी जाएगी।
रामगोपाल ने यह जताने की कोशिश की है कि टिकट बंटवारे में सिर्फ अखिलेश की ही चलनी है, क्योंकि यह सभी जानते हैं कि रामगोपाल अखिलेश के अघोषित प्रवक्ता हैं।
रामगोपाल द्वारा ऐसा बयान देने के बाद शिवपाल खेमे में जबरदस्त प्रतिक्रिया हुई। कहा जा रहा है कि शिवपाल ने इसकी शिकायत मुलायम सिंह यादव से की। उनका कहना था कि जब सभी कुछ रामगोपाल ही तय करेंगे तो संसदीय बोर्ड का क्या मतलब रह जाता है और क्या ‘नेताजी’ बस उनके निर्णय पर दस्तखत करने भर के रह गए हैं।
सूत्रों का कहना है कि ‘नेताजी’ को भी रामगोपाल का बयान नागवार लगा और आनन-फानन में अमर सिंह को सपा के केंद्रीय संसदीय बोर्ड का सदस्य बना दिया।
‘नेताजी’ ने अमर सिंह को न केवल संसदीय बोर्ड का सदस्य बनवाया बल्कि अमरसिंह की नियुक्ति का पत्र रामगोपाल के हस्ताक्षर से जारी करवा करवाया। जानकारों का कहना है कि ‘नेताजी’ ने ऐसा करके एकबार फिर पार्टी कार्यकर्ताओं को संदेश देने का प्रयास किया है कि वह ही पार्टी के सर्व सर्वा हैं।
सूत्रों का कहना है कि रामगोपाल के इस बयान के बाद टिकट के दावेदार पशोपेश में पड़ गए हैं कि किस दरबार में दावेदारी पेश करें। शिवपाल पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष हैं तो रामगोपाल संसदीय बोर्ड के सचिव और मुख्यमंत्री के सबसे विश्वसनीय हैं।
इस स्थिति से खेमेबंदी तो बढ़ेगी जिसका असर चुनाव पर भी पड़ेगा। अगर किसी तरह टिकट हासिल भी हो गया तो दूसरा खेमा उसके खिलाफ अपनी ताकत लगा देगा।