“एकनाथ शिंदे ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद के लिए बीजेपी से तीन शर्तें रखी हैं। अगर इन शर्तों को नहीं माना गया, तो शिवसेना सरकार से बाहर हो सकती है। जानिए पूरी खबर।”
महाराष्ट्र। मुख्यमंत्री के पद को लेकर सस्पेंस अब भी बना हुआ है, खासकर जब एकनाथ शिंदे ने बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व के सामने तीन शर्तें रख दी हैं। दिल्ली में अमित शाह और जेपी नड्डा के साथ बैठक के बाद, शिंदे ने सरकार गठन में हो रही देरी पर असंतोष जताया और एक समझौते का प्रस्ताव रखा। इस समझौते के तहत, बीजेपी को एक विकल्प चुनने को कहा गया है।
शिंदे ने रखीं तीन प्रमुख शर्तें
- मुख्यमंत्री पद का दावा: एकनाथ शिंदे ने स्पष्ट कहा कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव उनके नेतृत्व में लड़ा गया था, और उनकी जीत का मुख्य कारण महिला मतदाता, मराठा समुदाय, और ओबीसी का समर्थन था। उन्होंने दावा किया कि अगर उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया, तो यह इन समुदायों को गलत संदेश देगा।
- विभागों का बंटवारा: शिंदे ने कहा कि अगर उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनाया जाता है, तो उन्हें गृह, वित्त और राजस्व विभाग दिए जाएं। इन विभागों का बंटवारा राज्य में सत्ता के संतुलन को बनाए रखने में मदद करेगा। उन्होंने यह भी कहा कि इसके बाद वे तय करेंगे कि उपमुख्यमंत्री कौन होगा।
- शिवसेना की स्थिति: शिंदे ने यह चेतावनी दी कि अगर शिवसेना को ये महत्वपूर्ण विभाग नहीं दिए गए, तो उनकी पार्टी सरकार का हिस्सा नहीं बनेगी। इसके बजाय, शिवसेना बाहर से सरकार का समर्थन कर सकती है, और पार्टी के सात लोकसभा सांसद नरेंद्र मोदी सरकार को व्यापक हिंदुत्व के लिए समर्थन देंगे।
बीजेपी पर बढ़ सकता है दबाव
एकनाथ शिंदे के ये प्रस्ताव बीजेपी के लिए चुनौती बन सकते हैं। अगर बीजेपी इन शर्तों को स्वीकार करती है, तो देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री बनाने का उनका इरादा प्रभावित हो सकता है। दूसरी ओर, अगर बीजेपी शिंदे की शर्तों को नकार देती है, तो शिवसेना सरकार से बाहर हो सकती है, जिससे राज्य की राजनीतिक स्थिति और अस्थिर हो सकती है।
क्यों गांव गए शिंदे?
सत्ता बंटवारे पर शिंदे के असंतोष के कारण, शुक्रवार को उन्होंने मुंबई में होने वाली महायुति बैठक में भाग नहीं लिया और अपने गांव सतारा चले गए। इसके पीछे कहा जा रहा है कि मंत्री पद के बंटवारे को लेकर उनका गुस्सा था। शिवसेना के विधायक ने उदाहरण देते हुए कहा कि जब शिंदे उपमुख्यमंत्री थे, तो गृह विभाग उनके पास था, तो अब यह विभाग फडणवीस को क्यों दिया जाए।
अब देखना यह होगा कि बीजेपी इस राजनीतिक दबाव को कैसे संभालती है और क्या महायुति गठबंधन के भीतर एक समझौता हो पाता है।
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