लखनऊ। इमरजेन्सी सेवा काफी संवेदनशील होती है। ऐसी सेवाओं के लिए संवेदनशील चिकित्सकों को तैनात किया जाता है ताकि वे मामले की गम्भीरता को समझते हुये उसका निस्तारण कर सके।
हालांकि केजीएमयू प्रशासन बेहतर उपचार व्यवस्था को लेकर चाहे जितने दावे करे, लेकिन उसके दावे लगातार फेल हो रहे हैं। शनिवार को इमरजेन्सी में आए सत्यजीत की मौत इसका प्रमाण है। केजीएमयू के ट्रॉमा सेंटर में सत्यजीत की मौत के बाद परिजनों ने सुबह जककर हंगामा किया।
परिजनों का आरोप था कि डॉक्टर मरीज के लिए संवेदशनशील नहीं थे। जब उनको बताया जाता तभी वे हरकत में आते, नहीं तो मरीज दर्द से चिल्लता रहता। उन्होंने बताया कि डॉक्टर अंत तक मरीज की स्थिति सही होने की बात कही और सुबह होते ही उसे मृत घोषित कर दिया। परिसर में मौजूद लोगों का कहना था कि मरीज की मौत पर परिजनों ने आपा खो दिया और ट्रॉमा में पजिनों ने शव मिलने तक हंगामा किया।
बस्ती निवासी सत्यजीत लाल का एक्सीडेंट सीतापुर के पास खैराबाद में रात में तकरीबन दो से तीन के बीच हो गया था।
परिजन सत्यजीत को आनन-फानन में केजीएमयू के ट्रॉमा सेंटर ले आए थे। जहां डॉक्टर ने मरीज को भर्ती कर लिया। सत्यजीत रोडवेज में नौकरी करते थे। मरीज के परिजनों ने बताया कि ट्रॉमा सेंटर में सत्यजीत को भर्ती करने के बाद डॉक्टरों ने उनकी जांच की।
रात में डॉक्टरों ने उनकी स्थिति में सुधार की बात कही। लेकिन भोर सुबह डॉक्टरों ने उन्हें मृत बता दिया। परिजनों का आरोप है कि सत्यजीत के इलाज में डॉक्टरों ने लापरवाही की। उनके कहने पर ही डॉक्टर सत्यजीत को दवायें देते थे। यदि डॉक्टरों ने सत्यजीत के उपचार में संवेदनशीलता दिखाई होती तो उनको बचाया जा सकता था।
केस-1 बस्ती निवासी रामपूजन ने बच्चे को ट्रॉमा सेंटर के एनआईसीयू में भर्ती कराया था। जिसका डॉ शालिनी कर रही थी। डॉक्टरों ने जांच बच्चे की स्थिति ठीक बताई, लेकिन शिशु ने बीते शुक्रवार को दम तोड़ दिया था।
परिजनों ने जब शिशु का शव मांगा तो डॉक्टरों ने उनको कागजी कार्रवाई पूरी करने को कहा। जबकि अलाउद्दीन भी वही अपने बच्चे का इलाज करा रहे थे। जिनको चिकित्सकों मृत शिशु दे दिया। जबकि उनको इसकी जानकारी हुई तो उन्होंने अस्पताल में जमकर बवाल किया। मामला बढ़ने पर उनके शिशु की तफ्तीश की गई और काफी समय बाद उनको अपना बच्चा मिला।